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Pitru Paksha 2025: कुशा की अंगूठी पहनकर ही क्यों करते हैं श्राद्ध-पिंडदान?

Pitru Paksha Tradition: पितरों का श्राद्ध और पिंडदान करने जब हम किसी तीर्थ पर जाते हैं तो वहां पंडित हमारे अंगुली में घास से बनी अंगूठी जरूर पहनाते हैं। इस घास को कुशा कहते हैं। हिंदू धर्म में कुशा का विशेष महत्व है।

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Manish Meharele
Published : Sep 09 2025, 10:08 AM IST
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कुशा को क्यों मानते हैं पवित्र?
Image Credit : Gemini AI

कुशा को क्यों मानते हैं पवित्र?

Kusha Ki Anguthi Pahnkar Kyo Karte Hai Pinddaan: 7 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरूआत हो चुकी है, जो 21 सितंबर तक रहेगा। पितृ पक्ष के दौरान लोग अपने पूर्वजों की शांति के लिए तीर्थ स्थानों पर पिंडदान-तर्पण करने जाते हैं। श्राद्ध कर्म के दौरान पंडित हमारे दाएं हाथ की अनामिका अंगुली में घास के बनी एक अंगूठी पहनाते हैं। इस अंगूठी को पवित्री कहते हैं और जिस घास से बनी होती है उसे कुशा और डाब। मान्यता है कि कुशा की अंगूठी पहनकर श्राद्ध कर्म करने से पितृ बहुत खुश होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. नलिन शर्मा से जानिए पिंडदान-तर्पण करते समय कुशा का उपयोग क्यों करते हैं और इसका धार्मिक महत्व क्या है…


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श्राद्ध कर्म में क्यों पहनते हैं कुशा की अंगूठी
Image Credit : Getty

श्राद्ध कर्म में क्यों पहनते हैं कुशा की अंगूठी

जब भी पितरों का पूजन, श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान किया जाता है तो दाएं हाथ की अनामिका अंगुली में कुशा की अंगूठी पहनना जरूरी होता है क्योंकि इसी के माध्यम से पितरों को जल अर्पित किया जाता है। कुश से होकर पितरों को दिया गया जल अत्यंत पवित्र माना गया है। ऐसा करने से पितृ बहुत ही खुश होते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध कर्म में कुशा की अंगूठी पहनने से अर्थ है कि हमने पवित्र होकर अपने पितरों की शांति के लिए श्राद्ध कर्म व पिंडदान किया है।


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कैसे हुई कुशा की उत्पत्ति?
Image Credit : Getty

कैसे हुई कुशा की उत्पत्ति?

कुछ कोई साधारण घास नहीं है। इसकी उत्पत्ति भगवान भगवान विष्णु से हुई मानी जाती है। प्रचलित कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने जब वराह अवतार लिया तो हिरण्याक्ष को मारने के लिए उन्हें जल में उतरना पड़ा। पृथ्वी पर आकर स्वयं को सुखाने के लिए जब उन्होंने अपना शरीर घुमाया तो उनके कुछ बाल पृथ्वी पर गिर गए। उन्हीं बालों से कुशा की उत्पत्ति हुई, इसलिए इसे इतना पवित्र माना गया है।

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इसलिए कुशा को मानते हैं पवित्र
Image Credit : Getty

इसलिए कुशा को मानते हैं पवित्र

ऐसी मान्यता है कि कुशा के अग्रभाग में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और मूल भाग में भगवान शंकर निवास करते हैं। महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार, जब गरुड़देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए तो उन्होंने वह कलश थोड़ी देर के लिए कुशा पर रख दिया। कुशा पर अमृत कलश रखे जाने से कुशा को महत्व और भी अधिक हो गया। कुशा के स्पर्श से ही व्यक्ति पवित्र हो जाता है।


Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

About the Author

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Manish Meharele
मनीष मेहरेले। मीडिया में 19 साल का अनुभव, अभी एशियानेट न्यूज हिंदी के डिजिटल में काम कर रहे हैं। महाभारत, रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथों का अच्छा ज्ञान है। ज्योतिष-हस्तरेखा, उपाय, वास्तु, कुंडली जैसे टॉपिक पर पकड़ है। यह जीव विज्ञान में बीएससी स्नातक हैं । करियर की शुरुआत स्थानीय अखबार दैनिक अवंतिका से की। 2010 से 2019 तक दैनिक भास्कर डॉट कॉम में धर्म डेस्क पर काम किया है।
पितृ पक्ष

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