सार

Poila Baisakh 2023: हमारे देश के अलग-अलग राज्यों में नववर्ष को लेकर कई मान्यताएं हैं। कई स्थानों पर सौर कैलेंडर का प्रचलन है तो कहीं चंद्र कैलेंडर का। बंगाल में नया साल सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है। इसे पोइला बैसाख कहते हैं।

 

उज्जैन. बंगाल की कई परंपराएं और मान्यताएं काफी अलग हैं। यहां नववर्ष का आरंभ सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने के बाद से माना जाता है। यहां इसे पोइला बैसाख (Poila Baisakh 2023) कहते हैं। इस बार सूर्य 14 अप्रैल को मेष राशि में आ चुका है। इसलिए पोइला बैशाख 15 अप्रैल को मनाया जाएगा यानी शनिवार से बंगाली नववर्ष (1430) की शुरूआत होगी। आगे जानिए पोइला बैसाख से जुड़ी खास बातें…

पोइला बैसाख की मान्यता (History of Poila Baisakh )
बंगाली कैलेंडर की शुरूआत कब और कैसे हुई, इसको लेकर कई मान्यताएं हैं। कोई कहता है कि मुगल काल के दौरान बंगाली नववर्ष मनाने की परंपरा शुरू हुई तो कईं विद्वान इसे ‘विक्रमी हिन्दू कैलेंडर’ से जोड़कर देखते हैं। एक मान्यता ये भी है कि बंगाल के एक राजा ‘बिक्रमदित्तो’ ने बंगाली नववर्ष की नींव रखी थी।

गणेशजी की होती है पूजा (How to celebrate Poila Baisakh)
पोइला बैशाख बंगाल व इसके आस-पास के राज्यों जैसे त्रिपुरा आदि में बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। बांग्लादेश में भी ये त्योहार मनाने की परंपरा है। इस दिन सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा की जाती है जो कि सभी प्रकार के कष्ट दूर करने वाले देवता हैं। साथ ही देवी लक्ष्मी की भी पूजा इस दिन की जाती है। लोग इस पर्व के दिन पवित्र नदी में स्नान करते हैं और एक-दूसरे को नववर्ष की बधाई देते हैं।

क्या-क्या होता है इस दिन? (Recognition of Poila Baisakh)
पोइला बैसाख पर बच्चे सुबह प्रभात फेरी निकालते हैं। लोग एक-दूसरे से मिलने जाते हैं और बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते हैं। महिलाएं एक-दूसरे के माथे पर सिंदूर लगाती हैं। कई स्थानों पर धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। कुछ खास व्यंजन भी इस दिन बनाए जाते हैं। लोग सुब जल्दी उठकर नए साल का सूर्योदय देखते हैं। बंगलादेश में ये उत्सव सादगीपूर्ण तरीके से मनाया जाता है। हालांकि यहां भी बंगाल को संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।


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