सार

Shabri Jayanti 2023: रामायण में भगवान श्रीराम के अनेक भक्तों का वर्णन मिलता है, इन्हीं में से एक थी शबरी। भगवान श्रीराम ने वनवास क दौरान इनके हाथों से झूठे बेर भी बड़ी ही खुशी से खाए थे। इस बार शबरी जयंती 24 जनवरी, शुक्रवार को है।

 

उज्जैन. फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को शबरी जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 24 फरवरी, शुक्रवार को है। कईं स्थानों पर इस दिन माता शबरी की स्मृति यात्रा निकाली जाती है। माता शबरी का वर्णन वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस दोनों में मिलता है। वे भगवान श्रीराम की अनन्य भक्त थीं। उन्होंने श्रीराम को माता सीता की खोज करने के लिए आगे का रास्ता बताया था। माता शबरी कौन थी और वे किसकी शिष्या थी? आगे जानिए उनके बारे में ये खास बातें…


जानें कौन थीं माता शबरी? (Know who was Shabri?)
धर्म ग्रंथों के अनुसार, माता शबरी का असली नाम श्रमणा था। ये भील सामुदाय की होकर शबर जाति से संबंध रखती थीं, इसी वजह से इन्हें शबरी कहा जाने लगा। इनके पिता ने इनका विवाह एक युवक से तय किया था। विवाह से पहले परंपरा के अनुसार पशुओं की बलि दी जाने थी। उन पशुओं को देख श्रमणा का हृदय द्रवित हो गया और वे विवाह न करते हुए दंडकारण्य वन में पहुंच गई। यहां उन्होंने मातंग ऋषि की सेवा की और उन्हें अपना गुरु बना लिया। ऋषि मातंग ने ही शबरी को श्रीराम की भक्ति करने का आदेश दिया और ये भी कहा कि श्रीराम एक दिन तुमने मिलने यहीं आएंगे।


श्रीराम को खिलाए अपने झूठे बेर
वनवास के दौरान जब रावण ने देवी सीता का हरण कर लिया तो श्रीराम उन्हें खोजते हुए इधर-उधर भटकने लगे। देवी सीता की खोज करते-करते एक दिन उनकी भेंट माता शबरी से हुई, जो उनकी ही प्रतीक्षा कर रही थी। माता शबरी श्रीराम के लिए बेर लेकर आई और चख-चख कर मीठे बेर उन्हें खिलाए। श्रीराम ने वो बेर बड़े ही प्रेम से खाए। इसके बाद माता शबरी ने ही उन्हें आगे का मार्ग भी बताया।


पूर्व जन्म में कौन थी माता शबरी? (Who was Shabri in the previous birth?)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, शबरी पूर्व जन्म में एक रानी थी, उनका नाम परमहिसी था। एक बार रानी परमहिसी राजा के साथ किसी धार्मिक कार्यक्रम में गईं। वहां उन्होंने ऋषियों का एक समूह देखा जो भगवान की भक्ति में मगन था। रानी परमहिसी का मन भी उन ऋषियों के बीच बैठकर भजन करने को कर रहा था, लेकिन राजा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। व्यथित होकर रानी गंगा तट पर पहुंची और गंगा माता से याचना की कि “अगले जन्म में मुझे न तो रूप चाहिए और न ही रानी पद। मैं सिर्फ भगवान की भक्ति करना चाहती हूं।” इतना कहकर रानी ने जल समाधि ले ली और अगले जन्म में शबरी के रूप में जन्म लिया।


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