सार

शनि जयंती इस बार 19 मई, शुक्रवार को है। इस दिन शनिदेव के मंदिरों में भक्तों की लंबी कतारें लगती हैं। वैसे तो हमारे देश में शनिदेव के अनेक मंदिर हैं, लेकिन इन सभी में तमिलनाडु में स्थित अक्षयपुरीश्वर मंदिर बहुत खास है।

 

उज्जैन. शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिए लोग शनि जयंती पर विशेष पूजन-अर्चन करते हैं। इस बार शनि जयंती 19 मई, शुक्रवार को है। वैसे तो हमारे देश में शनिदेव के अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं। इन्हीं में से एक है अक्षयपुरीश्वर मंदिर (Akshaypurishwar Temple)। इस मंदिर से शनिदेव से संबंधित कई मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हुई हैं। आगे जानिए इस मंदिर से जुड़ी खास बातें…

कहां है शनिदेव का ये प्रसिद्ध मंदिर?
शनिदेव का अक्षयपुरीश्वर मंदिर तमिलनाडु (Tamil Nadu) के पेरावोरानी (Peravorani) के पास तंजावूर (Thanjavur) के विलनकुलम (Vilankulam) में स्थित है। शनिदेव का ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां उनकी पत्नियों के साथ इनकी पूजा होती है। धर्म ग्रंथों में शनिदेव की पत्नियों के नाम मंदा और ज्येष्ठा बताए गए हैं। जिन लोगों का जन्म साढ़ेसाती में हुआ होता है, वे लोग विशेष रूप ये यहां दर्शन और पूजा करने आते हैं।

कितना पुराना है ये मंदिर?
शनिदेव का मंदिर काफी प्राचीन बताया जाता है। इसका निर्माण सन 1335 के आस-पास बताया जाता है, इस हिसाब से ये मंदिर लगभग 700 साल पुराना है। इतिहासकारों के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण चोल राजा पराक्र पंड्यान ने करवाया था। इस मंदिर का प्रांगण काफी बड़ा है और यहां कई छोटे मंडप बने हुए हैं। मंदिर का सबसे खास हिस्सा कोटरीनुमा स्थान हैं जहां सूर्य का प्रकाश भी नहीं पहुंच पाता।

ये है इस मंदिर से जुड़ी कथा
शनिदेव का अक्षयपुरीश्वर मंदिर से एक कथा भी जुड़ी है। तमिल में विलम का अर्थ बिल्व और कुलम का अर्थ झूंड होता है। यानी यहां पहले बहुत अधिक संख्या में बिल्ववृक्ष थे, इसलिए इसका नाम विलमकूलम पड़ा। इन्हीं वृक्षों की जड़ों में उलझकर शनिदेव गिर गए थे, जिससे उनके पैरों में चोट गई गई थी। तब शनिदेव ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव प्रकट हुए और उन्होंने विवाह और पैर ठीक होने का आशीर्वाद दिया।


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