Unique Temples Of India: उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में एक ऐसा शिव मंदिर है, जहां भक्त भगवान को झाड़ू चढ़ाते हैं। ये परंपरा प्राचीन समय में चली आ रही है। इस मंदिर से जुड़ी कईं मान्यताएं भी हैं जो इसे और भी खास बनाती हैं।

Pataleshwar Temple Moradabad: हमारे देश में अनेक प्राचीन शिव मंदिर हैं। इनमे से कुछ मंदिरों से कोई न कोई अजीब परंपरा भी जुड़ी है। ऐसा ही एक मंदिर उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले के बहजोई गांव में स्थित है, इसे पातालेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां भक्त भगवान शिव झाड़ू विशेष रूप से चढ़ाते हैं। सावन के दौरान यहां रोज हजारों भक्त आते हैं। आगे जानिए इस मंदिर से जुड़ी खास बातें…

बहुत प्राचीन है इस मंदिर का इतिहास

पातालेश्वर मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है लेकिन वर्तमान में जो परिसर यहां बना हुआ है वो 150 साल पुराना बताया जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां स्थित शिवलिंग की स्थापना किसने की, ये बात किसी को नहीं पता। कुछ लोग इसे जमीन से निकला हुआ भी बताते हैं। इस मंदिर में सिर्फ एक शिवलिंग ही स्थापित है। अन्य किसी देवी-देवता की यहां कोई मूर्ति नहीं है। वैसे तो रोज यहां हजारों लोग आते हैं और लेकिन सावन में यहां मेले जैसा माहौल रहता है।

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भक्त क्यों चढ़ाते हैं यहां झाड़ू?

पातालेश्वर मंदिर में लोग दूध, जल, फल-फूल, बेलपत्र, भांग, धतूरे के साथ-साथ सीकों वाली झाड़ू भी चढ़ाते हैं। ऐसी मान्यता है कि अगर किसी को त्वचा रोग हो और वो यहां भगवान को झाडू चढ़ाए तो उसे इस रोग से मुक्ति मिल जाती है। लोग अन्य समस्याओं के निदान के लिए भी यहां भगवान को झाड़ू चढ़ाते हैं। जिन लोगों की मनोकामना पूरी हो जाती है वे दोबारा यहां दर्शन के लिए जरूर आते हैं।

कैसे शुरू हुई झाड़ू चढ़ाने की परंपरा?

स्थानीय लोगों की मानना है कि किसी समय यहां एक धनवान व्यापारी रहता था। एक बार उसे चर्म रोग यानी स्किन की बीमारी हो गई। जब वह इलाज के लिए वैद्य के पास जा रहा था तो उसे प्यास लगी। पास में एक संत के आश्रम पर वह पानी पीने रूका। जाते-जाते आश्रम में रखी एक झाड़ू से उसका पैर टकरा गया, जिससे उसका रोग तुरंत ठीक हो गया। ये देख व्यापारी ने संत को धन देने की इच्छा प्रकट की। संत ने व्यापारी को इस स्थान पर एक मंदिर बनाने को कहा। व्यापारी ने ऐसा ही किया। यही मंदिर आज पातालेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।


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