सार
Durga Visarjan 2022: 4 अक्टूबर, मंगलवार को शारदीय नवरात्रि का अंतिम दिन है। इस दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। कई स्थानों पर नवरात्रि की नवमी तिथि पर देवी प्रतिमाओं व जवारों का विसर्जन कर दिया जाता है।
उज्जैन. शारदीय नवरात्रि (Sharadiya Navratri 2022) की अंतिम तिथि यानी नवमी बहुत ही खास होती है। इस दिन कन्या पूजा, कुलदेवी पूजा करने के साथ जवारे विसर्जन की परंपरा भी है। हालांकि कुछ स्थानों पर दसवें दिन यानी दशहरे पर भी जवारे विसर्जन किए जाते हैं। स्थानीय परंपराओं के अनुसार लोग देवी प्रतिमाओं और जवारों का विसर्जन करते हैं। आगे जानिए 4 और 5 अक्टूबर को आप किस समय जवारे विसर्जन कर सकते हैं, साथ ही पूजा विधि और मंत्र…
जवारे विसर्जन के शुभ मुहूर्त (4 अक्टूबर, मंगलवार)
- सुबह 09.15 से 11.20 तक
- सुबह 11.45 से दोपहर 12.30 तक
- दोपहर 1 से 2 बजे तक
जवारे विसर्जन के शुभ मुहूर्त (5 अक्टूबर, बुधवार)
पंचांग के अनुसार अश्विन शुक्ल दशमी तिथि 4 अक्टूबर, मंगलवार की दोपहर 02.20 से शुरू होकर अगले दिन 5 अक्टूबर, बुधवार की दोपहर 12 बजे तक रहेगी। इस दिन विसर्जन के मुहूर्त इस प्रकार हैं-
सुबह 9.30 से दोपहर 12 बजे तक
दोपहर 2 से 2.50 तक
दोपहर 3 से शाम 6 बजे तक
ये है जवारे विसर्जन की विधि (Jaware Visrjan Ki Vidhi)
प्रतिमा और जवारे विसर्जन के पहले इनकी अबीर, गुलाल, कुंकुम, हल्दी, चावल, फूल, आदि से पूजा करें तथा इस मंत्र से देवी की आराधना करें-
रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहि मे।
पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि मे।।
महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनी।
आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमोस्तु ते।।
- इसके बाद हाथ में चावल व फूल लेकर देवी भगवती का इस मंत्र के साथ विसर्जन करें-
गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि।
पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।।
- मंत्र बोलने के बाद दुर्गा प्रतिमा व जवारों का विसर्जन किसी नदी या तालाब में करें। इस तरह विधि-विधान से विसर्जन करने पर आपकी हर तरह की परेशानी दूर हो सकती है।
क्यों किया जाता है देवी का विसर्जन?
मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा अपने लोक से उतरकर धरती पर आती हैं और 9 दिनों तक भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। नवरात्रि के बाद माता अपने लोक में लौट जाती हैं। इसी मान्यता को ध्यान में रखते हुए नवरात्रि के पहले दिन माता का आवाहान किया जाता है, वहीं अंतिम दिन माता उन्हें विसर्जित किया जाता है यानी उनके लोक में जाने की प्रार्थना की जाती है। इसके बाद प्रतिमाओं और जवारों का नदी या तालाब में विसर्जन किया जाया है।
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