सार

Mokshada Ekadashi 2022: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। एक महीने में 2 बार एकादशी तिथि आती है। इस तरह साल में कुल 24 एकादशी का योग बनता है। इस बार 3 व 4 दिसंबर यानी दो दिन मोक्षदा एकादशी का व्रत किया जाएगा। 
 

उज्जैन. एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा विशेष रूप से की जाती है। साल में कुल 24 एकादशी होती है। इन सभी का नाम और महत्व अलग-अलग है। मोक्षदा एकादशी भी इनमें से एक है। ये एकादशी अगहन मास के शुक्ल पक्ष में आती है। इसी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। गीता से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है, इसलिए इस एकादशी का नाम मोक्षदा (Mokshada Ekadashi 2022) रखा गया है। इस बार इस व्रत को लेकर स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय के लोगों में मतभेद नजर आ रहा है। आगे जानिए स्मार्त और वैष्णव किस दिन ये व्रत करेंगे…

स्मार्त और वैष्णव कब करें मोक्षदा एकादशी व्रत (Mokshada Ekadashi 2022 Date)
पंचांग के अनुसार, अगहन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 3 दिसंबर, शनिवार की सुबह 05:39 से 04 दिसंबर, रविवार की सुबह 05:34 तक रहेगी। दोनों ही दिन एकादशी तिथि में सूर्योदय होगा। स्मार्त संप्रदाय के लोग 3 दिसंबर, शनिवार को और वैष्णव संप्रदाय के लोग 4 दिसंबर, रविवार को मोक्षदा एकादशी का व्रत करेंगे। 

किस दिन कौन-सा योग बनेगा? (Mokshada Ekadashi 2022 Parna Time)
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी के अनुसार, 3 दिसंबर, शनिवार को प्रजापति (धाता) और वरियान नाम के 2 शुभ योग बनेंगे। जो लोग इस दिन मोक्षदा एकादशी का व्रत करेंगे, उनके लिए पारणा का समय 4 दिसंबर, रविवार की सुबह 07:05 से 09:09 तक रहेगा।
वहीं 4 दिसंबर को वरियान, परिघ, सवार्थसिद्धि और आनंद नाम के 4 योग दिन भर रहेंगे। जो लोग इस दिन मोक्षदा एकादशी का व्रत करेंगे, उनके लिए पारणा का समय सुबह 06.59 से 09.04 तक रहेगा।

इस विधि से करें मोक्षदा एकादशी व्रत (Mokshada Ekadashi 2022 Puja Vidhi)
- स्मार्त और वैष्णव अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार, जिस दिन भी व्रत करें, उस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प करें। 
- घर में किसी हिस्से की साफ-सफाई करें उसे फूलों से सजाएं। उस स्थान एक एक चौकी स्थापित करें। इसे चौकी पर श्रीकृष्ण की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- सबसे पहले प्रतिमा या चित्र पर माल्यार्पण करें। धूप बत्ती और दीपक जलाएं। इसके बाद कुंकुम से तिलक करें और अबीर, गुलाल, रोली, चंदन आदि चीजें अर्पित करें। 
- भगवान श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री व मौसमी फलों का भोग लगाएं। उसमें तुलसी के पत्ते जरूर डालें। अंत में आरती करें।
- पूरे दिन निराहार रहें। संभव न हो तो एक समय फलाहार कर सकते हैं। रात में सोए नहीं, भजन-कीर्तन या मंत्र जाप करें। अगले दिन पारणा के बाद स्वयं भोजन करें।

भगवान श्रीकृष्ण की आरती (Lord Krishna Aarti)
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ 
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै । बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग, अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा बसी शिव सीस, जटा के बीच,
हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद,
कटत भव फंद, टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

ये है मोक्षदा एकादशी की कथा (Mokshada Ekadashi Katha)
किसी राज्य में वैखानस नामक राजा था। एक बार रात में राजा ने सपने में देखा कि उसके पिता नरक में है। सुबह उसने ये बात ब्राह्मणों को बताई। राजा ने ब्राह्मणों से कहा कि “ कोई ऐसा उपाय बताईए, जिससे मेरे पिताजी नरक से यातनाओं से मुक्त हो सकें। ब्राह्मणों ने कहा कि “नजदीक ही पर्वत ऋषि का आश्रम है, वे आपकी समस्या का समाधान कर सकते हैं।” राजा बड़ी आशा लेकर उनके पास गए। वहां उन्होंने पूरी बात ऋषि को बताई।
राजा की बात सुनकर पर्वत मुनि ने आंखें बंद कि और कुछ देर बाद बोलें कि “ पूर्व जन्मों के पाप के कारण तुम्हारे पिता की ऐसी दशा हुई है।”
राजा ने इसका उपाय पूछा तो ऋषि ने कहा कि “आप मोक्षदा एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता को नर्क से मुक्ति मिल जाएगी।”
राजा ने ऐसा ही किया और इसके प्रभाव से उनके पिता को नरक से मुक्ति मिल गई। इस तरह जो भी व्यक्ति मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है, उसके पितरों का उद्धार हो जाता है।


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