सार
Sawan Pradosh 2022: इस बार 9 अगस्त, मंगलवार को श्रावण शुक्ल त्रयोदशी तिथि होने से मंगल प्रदोष व्रत किया जाएगा। ये व्रत बहुत ही खास है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से शिवजी की पूजा करने से हर मनोकामना पूरी हो सकती है और संकट भी दूर होते हैं।
उज्जैन. प्रत्येक महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत (Mangal Pradosh Vrat kab hai) किया जाता है। इस तरह एक साल में 24 प्रदोष व्रत किए जाते हैं। इस बार 9 अगस्त, मंगलवार को श्रावण शुक्ल त्रयोदशी तिथि पर ये व्रत किया जाएगा। मंगलवार को त्रयोदशी तिथि होने से ये मंगल प्रदोष कहलाएगा। श्रावण में प्रदोष व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि ये महीना और तिथि दोनों ही भगवान शिव को अति प्रिय है। आगे जानिए मंगल प्रदोष की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और कथा…
कब से कब तक रहेगी प्रदोष तिथि? (Mangal Pradosh Vrat shubh muhurat)
पंचांग के अनुसार, श्रावण शुक्ल त्रयोदशी तिथि 9 अगस्त, मंगलवा की शाम 05.45 से शुरू होगी, जो 10 अगस्त, बुधवार को दोपहर 02.15 तक रहेगी। चूंकि प्रदोष व्रत की पूजा शाम को की जाती है, इसलिए ये व्रत 9 अगस्त को ही किया जाएगा। नक्षत्रों के संयोग से इस दिन छत्र और मित्र नाम के 2 शुभ योग रहेंगे। इसके अलावा प्रीति नाम का एक अन्य शुभ योग भी इस दिन रहेगा। इन शुभ योगों में कई गई शिवजी की पूजा अत्यंत फलदाई रहेगी।
इस विधि से करें पूजा (Mangal Pradosh Vrat puja vidhi)
9 अगस्त की सुबह सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद अपनी इच्छा अनुसार व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद भगवान शिव की पूजा विधि-विधान से करें। सबसे शुद्ध जल चढ़ाएं, इसके बाद पंचामृत और दोबारा जल चढ़ाएं। इसके बाद एक-एक करके बिल्व पत्र, धतूरा, आंकड़ा, फूल, फल, भांग आदि चीजें चढ़ाएं। अंत में भोग लगाकर शिवजी की आरती करें। मंगल प्रदोष पर इस विधि से पूजा करने से हर तरह की परेशानियां दूर हो सकती हैं।
मंगल प्रदोष की कथा (Sawan Pradosh 2022 Katha)
- धर्म ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन समय में एक विधवा ब्राह्मण स्त्री थी भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर घर लौट रही थी तो उसे एक युवक घायल अवस्था में पड़ा हुआ मिला। ब्राह्मणी ने उस युवक को अपने साथ ले आई और अपने पुत्र के साथ उसका भी पालन-पोषण करने लगी।
- एक दिन जब ब्राह्मणी दोनों बालकों को लेकर मंदिर गई तो वहां एक ऋषि ने उसे बताया ये युवक विदर्भदेश का राजकुमार है। शत्रुओं ने इसका राज-पाठ छिन लिया है। तब ऋषि ने कहा कि इन दोनों युवकों को मंगल प्रदोष का व्रत करना चाहिए।
- ऋषि के कहने पर दोनों युवक मंगल प्रदोष का व्रत करने लगे। एक दिन जब दोनों युवक वन में घूम रहे थे, तब उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। राजकुमार उनमें से अंशुमती नाम की गंधर्व कन्या पर मोहित हो गया। गंधर्व कन्या ने उसे अपने पिता से भी मिलवा दिया।
- भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्व ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से करवा दिया। राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्वों की सेना की सहायता से अपने दुश्मनों का हराकर अपना खोया राज्य पुन: प्राप्त कर लिया। ब्राह्मणी और उसका पुत्र भी राजकुमार के साथ खुशी-खुशी रहने लगे।
- स्कंदपुराण के अनुसार जो भी व्यक्ति पूरे विधि-विधान से मंगल प्रदोष व्रत करता है और इसकी कथा पढ़ता अथवा सुनता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और वह कभी गरीब नहीं होता।
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