सार

यूरोपियन फुटबाल की दिग्गज टीम आर्सेनल से खेलने का सपना हर किसी फुटबाल प्लेयर का होता है। लेकिन भारत का ऐसा फुटबालर भी था जिसमें आर्सेनल से खेलने का ऑफर ठुकरा दिया था।

 

Arsenal FC. भारत के पहले फुटबाल कप्तान ने यूरोपियन दिग्गज टीम आर्सेनल से फुटबाल खेलने का ऑफर ठुकरा दिया था। जबकि हर फुटबालर का यह सपना होता है कि उसे कभी आर्सेनल से खेलने का मौका मिले। लेकिन भारतीय फुटबालर ने सिर्फ पिता की इच्छा पूरी करने के लिए इतने बड़े ऑफर को ठोकर मार दी थी। उस फुटबालर के पिता उन्हें एमबीबीएस की पढ़ाई करने के लिए कह रहे थे और उसने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए आर्सेनल का ऑफर ठुकरा दिया था। क्या आप उस फुटबालर को जानते हैं?

फुटबाल खिलाड़ी तालीमेरेन आओ

इस खिलाड़ी का नाम तालीमेरेन आओ था, जिन्हें टी आओ, ताई आओ और डॉ. ताई के नाम से भी जाना जाता है। वे भारतीय फुटबॉल टीम के महान कप्तान थे। वह उस ऊंचाई तक पहुंचे जहां यूरोप की फुटबॉल महाशक्तियों में से एक आर्सेनल ने अपनी टीम से खेलने का ऑफर दिया था। लेकिन तब कद्दावर डिफेंडर ने इसे रिजेक्ट कर दिया था। इसका कारण यह था कि वे अपने पिता की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए एमबीबीएस का कोर्स करने लगे और करियर को अधूरे में ही छोड़ दिया था। आज भी फुटबाल के फैंस तालीमेरेन आओ को इसी रूप में याद करते हैं।

ओलंपिक खेलों में भारत के ध्वज वाहक

महान फुटबालर तालीमेरेन आओ लंदन में 1948 के ओलंपिक खेलों में स्वतंत्र भारत के पहले ओलंपिक दल के ध्वजवाहक थे। उन्होंने मोहन बागान एफसी टीम के लिए फुटबॉल बूट के बिना खेला। साथ ही भारतीय टीम के लिए भी ऐसे ही खेला और कप्तानी भी की। जब मीडिया ने इसके बारे में पूछा तो टीओ ने गजब का जवाब दिया कि यह फुटबॉल है, बूट बॉल नहीं। तालीमेरेन ने फॉरवर्ड प्लेयर थे और उनका शरीर बेहद मजबूत था। वे करीब 5 फीट 10 लंबे थे। बाद में वे डिफेंडर बने। उन्होंने 1943 और 1952 के बीच मोहन बागान के लिए खेला। ओलंपिक के अलावा उन्होंने नीदरलैंड के दौरे पर भी भारतीय टीम का नेतृत्व किया था। तब उन्होंने प्रसिद्ध क्लब अजाक्स एम्स्टर्डम को 5-2 से हराया था। भारतीय कप्तान के रूप में उन्होंने कई बार अंग्रेज मैनेजर को शर्मसार किया।

बाद में बन गए सर्जन

फुटबाल के चरम पर होने के वावजूद वे पिता की इच्छा के लिए एमबीबीएस की पढ़ाई करने लगे। तालीमेरेन ने कारमाइकल मेडिकल कॉलेज, जिसे अब आरजी कर मेडिकल कॉलेज के नाम से जाना जाता है, में अपनी मेडिकल पढ़ाई पूरी की। तालीमेरेन ने 1950 में एमबीबीएस की डिग्री हासिल की और फुटबाल का स्टारडम छोड़कर 1953 में कोहिमा में सिविल सर्जन बन गए। उन्होंने 1970 के दशक में नागा विद्रोह के दौरान दोनों पक्षों का इलाज करके अपना अलग स्थान बनाया। तालीमेरेन का 1998 में 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया। आज उनके नाम पर दो स्टेडियम हैं। एक गुवाहाटी में और दूसरा कलियाबोर में है। उनकी स्मृति में दो फुटबॉल टूर्नामेंट आयोजित किए जाते हैं। 2018 में उनकी याद में एक डाक टिकट भी जारी किया गया।

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