बिहार चुनाव की सरगर्मी के बीच तेजस्वी यादव के ‘किले’ राघोपुर विधानसभा क्षेत्र की पांच समस्याएं इस बार वोटरों के सबसे बड़े सवाल बन गई हैं। लालू परिवार की यह पारंपरिक सीट जहां ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्व रखती है।
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी तेज हो गई है और इस बार सबसे ज्यादा चर्चा में है राघोपुर विधानसभा क्षेत्र, लालू परिवार का गढ़ और तेजस्वी यादव की पारंपरिक सीट। यह इलाका सिर्फ सियासी वजहों से नहीं, बल्कि अपनी जमीनी समस्याओं के कारण भी सुर्खियों में है। गंगा कटाव, शिक्षा की कमी, पर्यटन का अधूरा सपना, किसानों की मुश्किलें और स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली, ये पांच बड़े मुद्दे हैं जो इस बार जनता के वोटिंग पैटर्न को तय कर सकते हैं। सवाल ये है कि क्या तेजस्वी यादव अपने ही गढ़ में जनता की इन मांगों पर खरे उतर पाएंगे?
गंगा कटाव का दर्द: रिंग बांध की मांग
राघोपुर विधानसभा का सबसे बड़ा दर्द है गंगा का कटाव। हर बरसात में दियारा इलाके की जमीन बाढ़ के पानी में समा जाती है। हजारों परिवार उजड़ते हैं, बच्चों की पढ़ाई रुक जाती है और खेती पूरी तरह बर्बाद हो जाती है। लोग वर्षों से रिंग बांध की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक सिर्फ आश्वासन मिले हैं। 2025 में यह मुद्दा जनता के गुस्से और उम्मीद दोनों का केंद्र बना हुआ है।
डिग्री कॉलेज का लंबा इंतजार
पूरे राघोपुर इलाके में एक भी डिग्री कॉलेज नहीं है। युवाओं को पढ़ाई के लिए पटना या अन्य जिलों का सहारा लेना पड़ता है। यह सीट भले ही दो मुख्यमंत्री और एक डिप्टी सीएम दे चुकी है, लेकिन शिक्षा के मामले में हालात जस के तस हैं। युवाओं का साफ कहना है कि अबकी बार शिक्षा हमारी सबसे बड़ी मांग होगी।
चेचर का इतिहास और टूरिज्म की आस
राघोपुर का चेचर गांव ऐतिहासिक महत्व रखता है। इसे बुद्ध सर्किट से जोड़ने की मांग लंबे समय से उठ रही है। अगर यह कदम उठता है तो पर्यटन बढ़ेगा, स्थानीय स्तर पर रोजगार मिलेगा और क्षेत्र की पहचान बिहार के बाहर भी बनेगी। मगर अब तक यह सपना सिर्फ कागजों में ही सिमटा हुआ है।
केले की खेती और किसानों की मुश्किलें
राघोपुर केले की खेती के लिए जाना जाता है। यहां के किसान इस फसल को नई पहचान देना चाहते हैं। उनकी चाह है कि खेती को बीमा की सुरक्षा मिले, केले से बने उत्पादों को प्रोसेसिंग यूनिट मिले और मंडी का सही सिस्टम तैयार हो। लेकिन किसानों का यह सपना अब तक अधूरा है। 2025 का चुनाव किसानों की बीमा और बाजार की मांग को सियासी बहस में फिर से लाने वाला है।
स्वास्थ्य सेवाओं की कमी
इलाके के अस्पताल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बेहद कमजोर स्थिति में हैं। बरसात के महीनों में सड़कों और जलजमाव की वजह से मरीजों को इलाज के लिए शहर तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। स्वास्थ्य सुविधा अब हर परिवार का बड़ा मुद्दा है, जिसे नज़रअंदाज़ करना किसी भी नेता के लिए आसान नहीं होगा।
2020 का नतीजा और तेजस्वी की हैट्रिक
2020 के चुनाव में तेजस्वी यादव ने 97,404 वोट पाकर तीसरी बार राघोपुर पर राजद का झंडा गाड़ा। बीजेपी के सतीश यादव को 59,230 और एलजेपी के राकेश रौशन को 24,947 वोट मिले। यह नतीजा साबित करता है कि लालू परिवार का किला अब भी मजबूत है, लेकिन चुनौतियां जमीनी हकीकत से जुड़ी हैं।
राघोपुर का सियासी इतिहास
1951 से अस्तित्व में आई इस सीट पर पहले कांग्रेस का दबदबा था। 1980-1990 के दशक में उदय नारायण राय का दौर रहा। 1995 में लालू यादव ने यह सीट जीतकर इसे लालू-राबड़ी परिवार का गढ़ बना दिया। लालू दो बार, राबड़ी तीन बार और तेजस्वी अब तक दो बार यहां से जीत दर्ज कर चुके हैं। 2010 में जदयू के सतीश कुमार ने राबड़ी देवी को हराकर बड़ा उलटफेर किया, लेकिन बाद में राजद ने सीट दोबारा अपने कब्जे में ले ली।
लालू परिवार की सबसे अहम सीट
राघोपुर विधानसभा का महत्व सिर्फ इसलिए नहीं है कि यहां से लालू-राबड़ी और तेजस्वी जैसे बड़े चेहरे चुनाव लड़ते हैं। यह सीट बिहार की राजनीति की धुरी रही है। यहीं से लालू यादव दो बार मुख्यमंत्री, राबड़ी देवी तीन बार मुख्यमंत्री और तेजस्वी यादव दो बार डिप्टी सीएम की कुर्सी तक पहुंचे हैं।
2025 की चुनौती
राघोपुर की जनता अब सिर्फ वादों से संतुष्ट नहीं है। गंगा कटाव, कॉलेज की कमी, रोजगार, किसानों की परेशानी और स्वास्थ्य जैसी समस्याओं पर साफ और ठोस रोडमैप चाहती है। तेजस्वी यादव के लिए यह चुनाव सिर्फ सीट जीतने का सवाल नहीं, बल्कि अपने गढ़ में जनता का भरोसा बनाए रखने की असली परीक्षा है।
