बिहार चुनाव 2025 से पहले 48 घंटों में 3 जिलों में 4 हाई-प्रोफाइल हत्याएं हुई हैं। इन वारदातों में एक दरोगा, एक नेता और बाप-बेटे शामिल हैं। इन घटनाओं ने कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं और विपक्ष ने 'जंगलराज' का आरोप लगाया है।

पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण के मतदान से ठीक पहले, राज्य की धरती एक बार फिर खूनी हिंसा से दहल उठी है। महज 48 घंटों के भीतर राज्य के तीन प्रमुख जिलों—सिवान, मोकामा और आरा—में चार हाई-प्रोफाइल हत्याओं ने कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इन वारदातों ने विपक्ष को सत्तारूढ़ एनडीए पर हमला करने का मौका दे दिया है, जिसने एक बार फिर बिहार की राजनीति में 'जंगलराज' का जिन्न बोतल से बाहर निकाल दिया है। दरोगा से लेकर कारोबारी और स्थानीय नेता तक, कोई भी महफ़ूज़ नज़र नहीं आ रहा है।

हत्या नंबर 1: सिवान में दरोगा का गला रेता गया

अपराध की शुरुआत 29/30 अक्टूबर की रात सिवान जिले से हुई, जहाँ दरौंदा थाना में पदस्थापित सब-इंस्पेक्टर अनिरुद्ध कुमार की निर्मम हत्या कर दी गई। अपराधियों ने उन्हें अरहड़ के खेत में ले जाकर धारदार हथियार से गला रेतकर मारा। यह घटना न सिर्फ महकमे के लिए सदमे जैसी थी, बल्कि इसने यह सवाल भी खड़ा कर दिया कि जब एक पुलिस अधिकारी ही सुरक्षित नहीं है, तो आम नागरिक का क्या होगा? हालांकि, सिवान पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए इस मामले में दो महिला समेत सात अभियुक्तों को गिरफ्तार किया है, जिसकी वजह प्रेम-प्रसंग और व्यक्तिगत रंजिश बताई जा रही है।

हत्या नंबर 2: मोकामा में नेता की मौत और चुनावी हिंसा

अगले ही दिन, 30 अक्टूबर को पटना जिले की मोकामा सीट पर चुनावी हिंसा के दौरान राजद के पुराने नेता और जन सुराज के समर्थक दुलारचंद यादव की मौत हो गई। उनकी हत्या जदयू प्रत्याशी अनंत सिंह और जन सुराज उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी के काफिले के बीच हुए हिंसक टकराव के बाद हुई। शुरुआती धारणा गोली लगने से मौत की थी, लेकिन पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि उन्हें पैर में लगी गोली घातक नहीं थी, बल्कि उनकी मौत गंभीर शारीरिक आघात और मारपीट के कारण हुई है। इस हत्याकांड ने पूरे चुनाव आयोग को भी सक्रिय कर दिया, जिसने डीजीपी से तत्काल रिपोर्ट तलब की है।

हत्या नंबर 3 और 4: आरा में बाप-बेटे का डबल मर्डर

31 अक्टूबर की सुबह, भोजपुर (आरा) जिले के मुफस्सिल थाना क्षेत्र में हुए दोहरे हत्याकांड ने स्थिति को और गंभीर बना दिया। मिठाई की दुकान चलाने वाले प्रमोद महतो और उनके बेटे प्रियांशु महतो को सरेआम गोलियों से भून दिया गया। बाप-बेटे दोनों की लाशें सड़क किनारे खून से लथपथ मिलीं। प्रमोद महतो राष्ट्रीय लोक मोर्चा पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता भी थे, जिसके चलते पुलिस इस हत्याकांड को निजी रंजिश के साथ-साथ राजनीतिक कोण से भी जोड़कर देख रही है। ये दोनों हत्याएं महज 48 घंटों के भीतर हुई चौथी वारदात थीं।

सियासत में उबाल: विपक्ष का 'जंगलराज' आरोप

इन लगातार और हाई-प्रोफाइल हत्याओं के बाद बिहार की राजनीति में तीखी बयानबाजी शुरू हो गई है। विपक्ष, खासकर तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन, सीधे तौर पर नीतीश कुमार की NDA सरकार पर हमलावर है। विपक्ष का आरोप है कि राज्य में कानून-व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है और अपराधियों को किसी का खौफ नहीं रहा। वहीं, सत्ता पक्ष इस आरोप का मुकाबला करने के लिए लालू प्रसाद यादव के पुराने शासनकाल की याद दिला रहा है, ताकि यह साबित किया जा सके कि असल जंगलराज तो अतीत में था।