बिहार चुनाव 2025 से पहले एनडीए व महागठबंधन में सीट-बंटवारे पर खींचतान तेज है। कांग्रेस 76 सीटों पर तैयारी कर रही है और तेजस्वी को सीएम चेहरा मानने से भी इनकार कर रही है। महागठबंधन के अन्य दल भी अधिक सीटों की मांग कर रहे हैं।
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एनडीए और महागठबंधन दोनों ही खेमों में सीट शेयरिंग की खींचतान तेज हो गई है। जहां एनडीए अब तक सीटों को लेकर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया है, वहीं महागठबंधन में भी अंदरूनी टकराव साफ झलकने लगा है। सबसे बड़ी हलचल कांग्रेस की तरफ से है, जिसने अपने स्तर पर 76 सीटों पर तैयारी शुरू कर दी है। इनमें से 38 सीटों पर जल्द ही उम्मीदवारों का ऐलान किया जा सकता है।
कांग्रेस का सियासी दांव
सूत्रों की मानें तो बिहार कांग्रेस अब सीटों के बंटवारे में आरजेडी के इंतज़ार में नहीं बैठना चाहती। पार्टी ने साफ कर दिया है कि वह अपने संगठन और कार्यकर्ताओं की ताकत पर तैयारी करेगी। कांग्रेस नेताओं का तर्क है कि 2020 में पार्टी ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा और 19 सीटें जीती थीं। जिन सीटों पर कांग्रेस 5,000 से कम वोटों से हारी थी, उन्हें भी इस बार अपने खाते में चाहती है। कुल मिलाकर पार्टी इस बार भी करीब 70 सीटों पर दावा ठोक रही है।
तेजस्वी को लेकर नई खींचतान
महागठबंधन के भीतर सबसे बड़ा विवाद मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर भी है। कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वह फिलहाल तेजस्वी यादव को सीएम फेस घोषित नहीं करेगी। पार्टी का कहना है कि इस फैसले का अधिकार जनता के पास है। इस रुख से आरजेडी खेमे में नाराजगी की खबरें हैं। आरजेडी पहले से ही 90 से ज्यादा सीटों पर अपना दावा मजबूत मानती है और खुद को महागठबंधन का स्वाभाविक नेतृत्वकर्ता समझती है।
लेफ्ट और अन्य सहयोगियों की टेंशन
महागठबंधन में इस बार समीकरण और भी पेचीदा हो गए हैं। CPI-ML ने 2020 में 19 सीटों पर चुनाव लड़ा और 12 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार वह अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने पर जोर दे रही है। CPI और CPM भी सीटों में संतुलन चाहते हैं। VIP प्रमुख मुकेश सहनी, JMM और RLJP (पशुपति पारस गुट) भी अपनी मौजूदगी दिखाने में जुटे हैं। कुल मिलाकर महागठबंधन में केवल कांग्रेस और आरजेडी ही नहीं, बल्कि छोटे दल भी अपनी-अपनी ताकत दिखाने में लगे हैं।
एनडीए भी उलझा, विपक्ष को मौका
उधर, एनडीए में भी सीट बंटवारे पर सस्पेंस बना हुआ है। जेडीयू, बीजेपी, हम (HAM) और लोजपा (पशुपति गुट) के बीच तालमेल को लेकर अंतिम फैसला होना बाकी है। चुनाव करीब आते ही यह खींचतान विपक्ष को बड़ा मुद्दा देती है। महागठबंधन नेता आरोप लगाते हैं कि एनडीए की अंदरूनी लड़ाई से साबित होता है कि उनके पास जनता के मुद्दों से ज्यादा कुर्सी और हिस्सेदारी की चिंता है।
कांग्रेस का 'सिग्नल पॉलिटिक्स'
कांग्रेस का यह कदम कि वह आरजेडी की हरी झंडी का इंतज़ार नहीं करेगी, एक तरह से सिग्नल पॉलिटिक्स भी है। पार्टी यह दिखाना चाहती है कि वह महागठबंधन में केवल "फॉलोअर" की भूमिका में नहीं, बल्कि बराबरी की हिस्सेदारी चाहती है। जानकार मानते हैं कि कांग्रेस इस कदम से आरजेडी पर दबाव बना रही है कि सीट बंटवारे में उसे "बेहतर और बैलेंस" हिस्सेदारी दी जाए।
आगे क्या?
आज दिल्ली में कांग्रेस की महत्वपूर्ण बैठक होनी है, जिसमें बिहार कांग्रेस के कई दिग्गज नेता शामिल होंगे। बैठक के बाद स्थिति और स्पष्ट हो सकती है। हालांकि यह भी साफ है कि चुनाव नजदीक आते-आते महागठबंधन में सीट शेयरिंग की जंग और तीखी होगी।
