बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मायावती का अकेले चुनाव लड़ने का फैसला बड़ा सियासी तूफान ला रहा है। दलित वोट बैंक पर BSP की पकड़ से महागठबंधन और एनडीए दोनों के समीकरण बिगड़ सकते हैं।
Bihar Election 2025 Update: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के महासंग्राम में मायावती का यह फैसला कि उनकी पार्टी बहुजन समाज पार्टी (BSP) अकेले चुनाव लड़ेगी, बिहार की राजनीति के राजनीतिक समीकरण को उलझा सकता है। मायावती ने अपने आधिकारिक X अकाउंट से घोषणा की है कि बसपा 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी। इस कदम का न केवल दलित और पिछड़े वोट बैंक पर सीधा असर पड़ेगा, बल्कि दोनों प्रमुख राजनीतिक गठबंधनों एनडीए और महागठबंधन के लिए नई चुनौतियाँ भी खड़ी होंगी।
दलित वोट बैंक का जाल
बिहार में दलितों की आबादी करीब 17 से 20 फीसदी है, जिसमें रविदास, पासवान, महादलित और अन्य पिछड़ी जातियां शामिल हैं। अब तक यह वोट बैंक ज्यादातर महागठबंधन (राजद-कांग्रेस गठबंधन) और एनडीए (भाजपा-जदयू) के बीच बंटा हुआ था। लेकिन मायावती की बसपा ने साफ कर दिया है कि वह इस वोट बैंक को अपनी पार्टी के पक्ष में एकजुट करेगी। इससे बिहार के राजनीतिक नक्शे में बड़ा बदलाव आ सकता है क्योंकि इस वोट बैंक को अगर बसपा अपनी ओर बदलने में सफल रही तो पूरा राजनीतिक समीकरण उलझ जाएगा।
मायावती ने इस चुनाव के लिए कार्यक्रमों और जनसभाओं आदि की विशेष जिम्मेदारी पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक, युवा और सक्रिय नेता आकाश आनंद, केंद्रीय समन्वयक और राज्यसभा सांसद रामजी गौतम और बसपा बिहार राज्य इकाई को सौंपी है, जो पार्टी संगठन को बिहार के तीन जोन में बांटकर पैठ बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इस रणनीति के तहत दलित और पिछड़े वोटों को क्षेत्रवार मजबूती से कवर किया जाएगा।
महागठबंधन के लिए बड़ा खतरा
महागठबंधन के लिए यह फैसला सबसे बड़ा झटका साबित होगा। दलित वोटरों का बड़ा हिस्सा खासतौर पर रविदास सवर्ण और पासवान समुदाय के वोटर भारत के राजनीतिक परिदृश्य में कांग्रेस और आरजेडी के परंपरागत समर्थक रहे हैं। BSP के अकेले चुनाव लड़ने से ये वोटर्स महागठबंधन के बजाय BSP की ओर जा सकते हैं, जिससे उनके वोट शेयर में भारी गिरावट आ सकती है। इससे खासकर सीमांचल और मगध क्षेत्र में इंडिया गठबंधन की पकड़ कमजोर हो सकती है।
एनडीए की चुनौती
एनडीए के लिए भी मायावती का ये कदम पूरी तरह जोखिम मुक्त नहीं है। चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के नेतृत्व में दलित वोट बैंक जबरदस्त है परंतु BSP की स्वतंत्र उपस्थिति EBC और दलित वोटों के धड़ों को खींच सकती है। इससे एनडीए के लिए कई सीटें कांटे की टक्कर वाली हो जाएंगी। 2024 लोकसभा चुनाव के अनुभव से यह साफ है कि मतदान में थोड़े से भी वोट हटने से जीत का अंतर प्रभावित हो सकता है।
तीसरे मोर्चे की संभावना पर ग्रहण
पिछले कुछ महीनों में चर्चा थी कि BSP, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी और AIMIM मिलकर बिहार में तीसरा मोर्चा बना सकते हैं, जिससे दलित, पिछड़ा और मुस्लिम वोट एक साथ जुट सकें। मगर मायावती ने यह स्पष्ट कर दिया कि BSP किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी। इसका मतलब यह है कि बिहार में चुनाव का मुख्य मुकाबला अब भी इंडिया गठबंधन और एनडीए के बीच होगा और तीसरे मोर्चे की संभावनाएं खत्म होंगी। किन्तु वोट बंटवारे के कारण छोटे दलों को अप्रत्यक्ष फायदा मिल सकता है, जो चुनाव परिणाम को और अप्रत्याशित बना देगा।
BSP की चुनाव रणनीति सिर्फ वोट कटौती तक सीमित नहीं है बल्कि इसका उद्देश्य दलित और पिछड़े वर्ग के बीच पार्टी का जनाधार मजबूत करना और बिहार की राजनीति में BSP को एक प्रभावी खिलाड़ी के रूप में स्थापित करना है। इसके लिए पार्टी ने बूथ स्तर तक संगठन मजबूत करने, वोटरों से सीधा संवाद करने और क्षेत्रीय मुद्दों पर फोकस बढ़ाने की योजना बनाई है। बिहार की सामाजिक संरचना जटिल है, जहां जातिगत समीकरण और क्षेत्रीय पहचान का चुनावी प्रभाव गहरा होता है। मायावती ने बिहार को तीन ज़ोन में बांटकर हर क्षेत्र की राजनीतिक जरूरतों के अनुसार रणनीति विकसित की है, जिससे जनता के बीच पार्टी की पकड़ मजबूत होगी।
