कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भाजपा-जेडीयू के 20 साल के शासन की आलोचना की है। उन्होंने आरोप लगाया कि बिहार में उद्योग नष्ट कर सिर्फ "पलायन उद्योग" स्थापित किया गया, जिससे 3 करोड़ से अधिक लोग पलायन कर गए।
पटनाः कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने बिहार में भाजपा-जेडीयू के पिछले 20 वर्षों के शासन पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर एक विस्तृत पोस्ट में दावा किया कि इस दौरान बिहार में औद्योगिक विकास नहीं, बल्कि "सिर्फ़ और सिर्फ़ पलायन उद्योग स्थापित किया गया", जिससे राज्य विकास और उद्योग के राष्ट्रीय नक्शे से लगभग मिट गया है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने खेद व्यक्त किया कि जो बिहार कभी चीनी, पेपर, जूट, सिल्क और डेयरी के लिए जाना जाता था, वह आज बेरोज़गारी और बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन का पर्याय बन चुका है। वर्तमान में 3 करोड़ से अधिक लोग रोज़गार की तलाश में बिहार छोड़ चुके हैं, जिनमें कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया, अररिया जैसे सीमावर्ती इलाकों के मज़दूर बंगाल और असम तक दिहाड़ी कर रहे हैं।
कांग्रेस शासन में स्थापित हुई औद्योगिक बुनियाद
जयराम रमेश ने आज़ादी के बाद अविभाजित बिहार में कांग्रेस की सरकारों द्वारा किए गए औद्योगिक कार्यों की याद दिलाई। उन्होंने कहा कि उस दौर में कांग्रेस ने दूरदर्शिता के साथ अनेक औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित कीं, जिन्होंने राज्य को देश के औद्योगिक मानचित्र पर मजबूती से स्थापित किया। उस समय भारी उद्योग, ऊर्जा, डेयरी और रेल उत्पादन के इर्द-गिर्द विकास का पहिया तेज़ी से घूम रहा था। कांग्रेस शासन में स्थापित प्रमुख औद्योगिक यूनिटों में बरौनी तेल शोधन कारखाना (जिसने बिहार को ऊर्जा उत्पादन का केंद्र बनाया), सिंदरी और बरौनी खाद कारखाना, बरौनी डेयरी (जो आज की 'सुधा डेयरी' की नींव है), रेल पहिया कारखाना (बेला), डीज़ल लोकोमोटिव कारखाना (मढ़ौरा) और नवीनगर थर्मल प्रोजेक्ट शामिल हैं।
मौजूद उद्योगों को भी किया गया चौपट
रमेश ने आरोप लगाया कि एक तरफ कांग्रेस सरकारों ने औद्योगिक बुनियाद खड़ी की, वहीं भाजपा-जेडीयू की सरकार ने एक भी महत्वपूर्ण नया उद्योग स्थापित नहीं किया, बल्कि अपनी भ्रष्ट और अव्यवस्थित नीतियों से मौजूद उद्योगों को भी चौपट कर दिया। उन्होंने कई उदाहरण दिए: अशोक पेपर मिल का 400 एकड़ का परिसर अब खंडहर बन चुका है। कभी बिहार में 33 से अधिक चीनी मिलें थीं, जिनकी देश के कुल चीनी उत्पादन में लगभग 40% हिस्सेदारी थी; लेकिन आज सकरी, रैयम, लोहट जैसी अधिकांश मिलें बंद पड़ी हैं और उनकी मशीनें कबाड़ में बेच दी गईं। इसी तरह, समस्तीपुर की रामेश्वर जूट मिल 2017 से बंद है, और भागलपुर का प्रसिद्ध सिल्क उद्योग दम तोड़ रहा है, जहाँ 95% बुनकर परिवार कर्ज और गरीबी में डूबे हैं।
मुख्यमंत्री के बयान और प्रधानमंत्री के वादों पर सवाल
जयराम रमेश ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के उस बयान पर भी सवाल उठाया, जिसमें उन्होंने कहा था कि 'बड़ा उद्योग तो समुद्र किनारे लगता है'। उन्होंने केंद्रीय मंत्री के इस तर्क को भी खारिज किया कि बिहार में उद्योग के लिए ज़मीन नहीं है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के चहेते उद्योगपतियों को 1 रुपये प्रति एकड़ ज़मीन दी जाती है, तो बाकी उद्योगों के लिए ज़मीन क्यों नहीं है? रमेश ने यह भी आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री हर चुनाव में बंद चीनी मिलों को पुनः चालू कराने का वादा करते हैं, लेकिन उनके हर वादे के बाद एक के बाद एक चीनी मिल बंद होती गई।
कांग्रेस का स्पष्ट सवाल और पुनर्निर्माण का संकल्प
कांग्रेस ने भाजपा-जेडीयू सरकार से तीन मूलभूत सवाल पूछे हैं
- जब कांग्रेस ने बिना समुद्र के बरौनी, सिंदरी जैसे भारी उद्योग स्थापित कर दिए थे, तो आज उद्योग लगाना असंभव क्यों बताया जा रहा है?
- क्या यह सच नहीं है कि पिछले 20 वर्षों में बिहार को उद्योगहीन कर दिया गया और केवल पलायन-आधारित अर्थव्यवस्था ही बची है?
- क्या यह सही नहीं है कि जिन मिलों ने किसानों, मज़दूरों और युवाओं को रोज़गार दिया, वे मिलें भाजपा-जेडीयू की गलत नीतियों और लापरवाही की बलि चढ़ गईं?
कांग्रेस ने अंत में संकल्प जताया कि बिहार में उद्योग, रोज़गार और आत्मनिर्भरता की उस परंपरा को फिर से मजबूत किया जाएगा, जिसे भाजपा-जेडीयू सरकार ने जानबूझकर कमज़ोर किया है। उनका नारा है: "बिहार को पलायन नहीं - पुनर्निर्माण चाहिए।"
