सासाराम में, 95 वर्षीय बीमार हरिहर सिंह वोट डालने के लिए मतदान केंद्र जा रहे थे। बूथ से 100 मीटर पहले ही रास्ते में उनका निधन हो गया। यह घटना लोकतंत्र के प्रति उनकी गहरी निष्ठा और कर्तव्यपरायणता को दर्शाती है।

रोहतास जिले के सासाराम विधानसभा क्षेत्र के करसेरुआ पंचायत के खैरा गांव में दूसरे चरण के मतदान के दौरान एक भावुक कर देने वाली घटना सामने आई। 95 वर्षीय हरिहर सिंह उर्फ हरिद्वार सिंह, जो सेवानिवृत्त पंचायत सेवक थे, मंगलवार की सुबह अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए मतदान केंद्र की ओर निकले थे। परिवार के लोगों ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से वह स्वास्थ्य की गंभीर स्थिति में थे, चलने-फिरने में असमर्थ थे और अधिकांश समय बिस्तर पर ही थे। इसके बावजूद, उन्होंने स्पष्ट रूप से इच्छा जताई थी कि वे इस चुनाव में वोट जरूर डालेंगे।

अंतिम इच्छा: “पहले वोट, फिर जो होना है हो जाएगा”

परिजनों के अनुसार, हरिहर सिंह पिछले दो-तीन दिनों से बहुत कम भोजन कर रहे थे और बोलने में भी कठिनाई हो रही थी। इसके बावजूद, मतदान की तारीख नजदीक आने पर उन्होंने परिवार को कई बार कहा, “बेटा, वोट डालकर ही जाऊंगा। यह मेरा धर्म है।” यह सिर्फ एक इच्छा नहीं, बल्कि लोकतंत्र के प्रति जीवन भर की निष्ठा थी।

मंगलवार की सुबह परिजनों ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए उन्हें मतदान केंद्र तक ले जाने की तैयारी की। उन्हें सावधानी से ई-रिक्शा पर बैठाया गया और गांव के लोग भी उनके साथ चलने लगे। सभी के चेहरे पर एक ही बात थी कि बूढ़े बाबूजी इतनी इच्छाशक्ति के साथ लोकतंत्र का सम्मान कर रहे हैं।

बूथ से बमुश्किल 100 मीटर दूर खत्म हो गई सांस

मतदान केंद्र पहुंचने से लगभग 100 मीटर पहले ही ई-रिक्शा पर बैठने के दौरान उनकी तबीयत अचानक बिगड़ी। परिवार और साथ चल रहे ग्रामीणों ने उन्हें संभाला, पानी पिलाने की कोशिश की, लेकिन कुछ ही क्षणों में उनकी सांसें थम गईं। मतदान केंद्र के बाहर ही लोगों के बीच अफरा-तफरी मच गई, कुछ ग्रामीणों ने तुरंत स्वास्थ्य केंद्र ले जाने का प्रयास किया, मगर तब तक देर हो चुकी थी।

गांव में शोक की लहर, आंखें नम, दिल भारी

खैरा गांव में यह खबर फैलते ही पूरे माहौल में भारी दुख छा गया। ग्रामीणों ने कहा कि हरिहर सिंह शांत स्वभाव के, ईमानदार और समाज सेवा में आगे रहने वाले व्यक्ति थे। पंचायत सेवक रहने के दौरान उन्होंने हमेशा जनता के काम को प्राथमिकता दी। आज उनकी अंतिम यात्रा भी मतदान केंद्र की ओर ही थी, लेकिन उनकी इच्छा पूरी नहीं हो सकी।

लोकतंत्र के प्रति अटूट विश्वास की मिसाल

इस घटना ने यह साफ दिखाया कि लोकतंत्र के प्रति आस्था सिर्फ नारा नहीं होती, कुछ दिल इसे जीवन भर सच में जीते हैं। एक बूढ़ा व्यक्ति, बीमार और कमजोर होने के बावजूद, अपनी आखिरी सांसों तक अपने अधिकार और कर्तव्य को निभाने की इच्छा रखता है, यह किसी भी राजनीतिक बहस से बड़ा संदेश है।

गांव वालों की प्रतिक्रिया

गांव के एक युवक ने कहा, “हमने हमेशा देखा है कि बाबूजी हर चुनाव में सबसे पहले वोट डालते थे। कहते थे कि वोट सिर्फ अधिकार नहीं, जिम्मेदारी भी है। आज वह जिम्मेदारी निभाते-निभाते ही चले गए।” परिवार इस समय शोक में डूबा हुआ है, लेकिन साथ ही गर्व भी है कि उनके बड़े बुजुर्ग ने अपने जीवन के अंतिम क्षण तक लोकतंत्र के प्रति अपनी निष्ठा नहीं छोड़ी।