गोरेयाकोठी विधानसभा चुनाव 2025 में भाजपा के देवेश कांत सिंह ने 105909 वोट पाकर जीत हासिल की। उन्होंने राजद के अनवारुल हक को 12385 वोटों से हराया। यह सीट भाजपा, राजद और जदयू के बीच कड़े मुकाबले के लिए जानी जाती है।

Goreyakothi Assembly Election 2025: गोरेयाकोठी विधानसभा चुनाव 2025 में भारतीय जनता पार्टी के देवेश कांत सिंह जीत गए हैं। उन्हें 105909 वोट मिले। उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल के अनवारुल हक को 12385 वोटों से हराया। बिहार की राजनीति में गोरेयाकोठी विधानसभा (Goreyakothi Assembly Election 2025) एक अहम सीट मानी जाती है। यहां का चुनाव हमेशा त्रिकोणीय या कड़े मुकाबले वाला रहा है। 2010 से लेकर 2020 तक इस सीट पर भाजपा, राजद और जदयू के बीच जबरदस्त टक्कर देखने को मिली है। 

2010: भाजपा ने दिखाई ताकत

2010 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पहली बार इस सीट पर बड़ी जीत दर्ज की। भाजपा प्रत्याशी भूमेंद्र नारायण सिंह को 42,533 वोट मिले, जबकि राजद के इंद्रदेव प्रसाद को 28,512 वोट मिले। जीत का अंतर रहा 14,021 वोटों का। यह नतीजा भाजपा के लिए निर्णायक साबित हुआ।

2015: महागठबंधन ने पलटा खेल

2015 में जब राजद-जदयू-कांग्रेस साथ आए तो तस्वीर बदल गई। राजद के सत्यदेव प्रसाद सिंह ने 70,965 वोट पाकर जीत दर्ज की। भाजपा के देवेश कांत सिंह को 63,314 वोट मिले और वे हार गए। इस बार जीत का अंतर करीब 7,651 वोटों का था। यह चुनाव साफ दिखाता है कि जब यादव-मुस्लिम और अन्य महागठबंधन वोट एकजुट होते हैं तो भाजपा को कठिनाई होती है।

2020: भाजपा की जोरदार वापसी

2020 में मुकाबला और रोमांचक हुआ। भाजपा प्रत्याशी देवेश कांत सिंह ने 87,368 वोट हासिल किए और राजद की नूतन देवी को हराया। राजद प्रत्याशी को 75,477 वोट मिले और हार का अंतर रहा 11,891 वोटों का। इस नतीजे से भाजपा ने दिखाया कि जमीनी स्तर पर उनकी पकड़ मजबूत हो रही है।

नोट: ग्रेजुएट तक की पढ़ाई करने वाले देवेश कांत सिंह पर कोई क्रिमिनल केस का चार्ज नहीं हैं। उनकी कुल संपत्ति करीब 3.87 करोड़ रुपए हैं और उन पर 56 लाख का कर्जा भी है।

जातीय समीकरण का खेल

  • गोरेयाकोठी में यादव, भूमिहार और मुस्लिम मतदाता सबसे ज्यादा प्रभाव रखते हैं।
  • यादव: परंपरागत रूप से राजद का समर्थन
  • भूमिहार: भाजपा का मजबूत वोट बैंक
  • मुस्लिम: राजद और जदयू में बंटे हुए

खास बात: इसके अलावा राजपूत, कुशवाहा, पासवान, नाई और अति पिछड़ा वर्ग भी चुनावी समीकरण को प्रभावित करते हैं।