Mahishi Vidhan Sabha Chunav 2025 : महिषी विधानसभा सीट पर RJD के गौतम कृष्णा ने JDU के गुंजेश्वर शाह को 3740 वोटों से हराया। 2020 में JDU ने यह सीट जीती थी। पहले RJD का गढ़ रही इस सीट पर अब जातीय समीकरण के साथ उम्मीदवार की छवि भी अहम हो गई है।
Mahishi Assembly Election 2025: महिषी विधानसभा सीट (Mahishi Assembly Seat) बिहार के सहरसा जिले की सबसे अहम राजनीतिक सीटों में से एक है। यहां से इस बार आरजेडी प्रत्याशी गौतम कृष्णा प्रत्याशी 93752 वोट प्राप्त करते हुए जेडीयू प्रत्याशी गुनजेश्वर शाह को 3740 वोटो से हराया। जेडीयू प्रत्याशी गुंजनेश्वर शाह को 90012 वोट मिले। यहां से निर्दलीय प्रत्याशी सुराज सम्राट 3142 के वोटों के साथ जमानत जब्त हो गई।
2020: जेडीयू ने आरजेडी को चौंकाया
महिषी विधानसभा चुनाव 2020 में बड़ा उलटफेर हुआ। जेडीयू प्रत्याशी गुंजेश्वर शाह ने आरजेडी के दिग्गज नेता गौतम कृष्ण को मात्र 1,630 वोटों के अंतर से हरा दिया। गुंजेश्वर शाह को 66,316 वोट मिले जबकि गौतम कृष्ण को 64,686 वोट मिले। तीसरे स्थान पर लोजपा के अब्दुर रज्जाक रहे जिन्हें 22,110 वोट मिले।
बदल रहा महिषी वोटर्स का मिजाज
गुंजेश्वर शाह ने खुद को एक नए चेहरे के रूप में पेश किया, जबकि गौतम कृष्ण आरजेडी के मजबूत आधार पर निर्भर रहे। यह नतीजा साफ दिखाता है कि महिषी का वोटर अब सिर्फ जातीय समीकरण पर भरोसा नहीं करता, बल्कि उम्मीदवार की छवि और रणनीति भी अहम हो गई है।
2015 और 2010: आरजेडी का मजबूत गढ़
2015 और 2010 दोनों चुनावों में आरजेडी ने जीत दर्ज की थी।
- 2015 में आरजेडी के डॉ. अब्दुल गफूर ने 56,436 वोट पाकर बीएलएसपी के चंदन कुमार साह को हराया।
- 2010 में भी डॉ. अब्दुल गफूर ने जीत दर्ज की थी। उन्हें 39,158 वोट मिले जबकि जदयू प्रत्याशी राज कुमार साह को 37,441 वोट मिले।
खास बात: डॉ. गफूर लगातार इस सीट पर आरजेडी का चेहरा रहे और उनका अकादमिक बैकग्राउंड (PhD) और सामाजिक पहचान उन्हें मजबूत उम्मीदवार बनाती रही।
जातीय समीकरण और प्रत्याशियों का प्रोफाइल
महिषी में यादव और मुस्लिम मतदाता मिलकर 40% से अधिक हैं, जो आरजेडी की परंपरागत ताकत रहे हैं। ब्राह्मण और भूमिहार वर्ग जेडीयू और भाजपा की ओर झुकाव रखते हैं। गुंजेश्वर शाह (जेडीयू) एक व्यवसायी पृष्ठभूमि से आते हैं, उनकी घोषित संपत्ति 3 करोड़ से अधिक है, जबकि गौतम कृष्ण (आरजेडी) की संपत्ति लगभग 2 करोड़ बताई गई। दोनों पर गंभीर आपराधिक मुकदमे नहीं हैं, जिससे चुनाव व्यक्तिगत छवि और जातीय संतुलन पर टिका रहता है।
