बिहार चुनाव 2025 में चंपारण से मिथिलांचल तक एनडीए का वर्चस्व महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती है। 39 सीटों में एनडीए का मजबूत आधार महागठबंधन की रणनीति और नेतृत्व को चुनौती दे रहा है।
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में चंपारण-मिथिलांचल क्षेत्र महागठबंधन के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, दरभंगा और सीतामढ़ी की कुल 39 विधानसभा सीटों में 2020 के चुनाव में एनडीए ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 32 सीटें अपने नाम की थीं, जबकि महागठबंधन मात्र 7 सीटों पर सिमट गया था।
2020 में एनडीए की जबरदस्त जीत
पूर्वी चंपारण की 12 सीटों में से एनडीए ने 9 सीटें जीतीं, जबकि महागठबंधन को केवल 3 सीटें मिलीं। पश्चिमी चंपारण में तो स्थिति और भी खराब थी - 9 सीटों में से एनडीए ने 8 सीटें हासिल कीं और महागठबंधन को महज 1 सीट से संतोष करना पड़ा। दरभंगा में 10 सीटों पर एनडीए का कब्जा 9 सीटों तक था, जबकि राजद के खाते में केवल 1 सीट आई। सीतामढ़ी की 8 सीटों में भी महागठबंधन का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था। यहां एनडीए ने 6 सीटें जीतकर अपना वर्चस्व बनाए रखा था।
महागठबंधन के सामने बड़ी चुनौती
इस बार महागठबंधन में 8 दल शामिल हो गए हैं, जिनमें आरजेडी, कांग्रेस, वीआईपी के अलावा पशुपति कुमार पारस की रालोजपा और झारखंड मुक्ति मोर्चा भी शामिल हुए हैं। सीट बंटवारे को लेकर अब तक कोई स्पष्ट फार्मूला नहीं बना है। कांग्रेस की बढ़ती मांगें तेजस्वी यादव के लिए सिरदर्द बन रही हैं। कांग्रेस ने 70 सीटों की मांग की है, जबकि भाकपा-माले भी अधिक सीटों की दावेदारी कर रहा है।
एनडीए में भी तनाव के संकेत
हालांकि एनडीए की स्थिति मजबूत दिखती है, लेकिन चिराग पासवान की 40 सीटों की मांग और जीतनराम मांझी के 20 सीटों के दावे से गठबंधन में खिंचाव के संकेत मिल रहे हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि महागठबंधन को इन क्षेत्रों में अपनी रणनीति में आमूलचूल बदलाव करना होगा। जातीय समीकरण, स्थानीय मुद्दे और प्रभावशाली उम्मीदवारों का चयन महागठबंधन की सफलता के लिए अहम होगा।
मुख्यमंत्री पद का चेहरा
महागठबंधन में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया जा चुका है, जबकि एनडीए अभी भी नीतीश कुमार के नेतृत्व पर सहमत दिखता है। हालांकि, भाजपा के बढ़ते प्रभाव से स्थिति में बदलाव की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। चंपारण-मिथिलांचल में एनडीए का मजबूत आधार महागठबंधन के लिए गंभीर चुनौती है। 2020 के परिणामों को देखते हुए, इन 39 सीटों पर जीत हासिल करना महागठबंधन के लिए उतना ही कठिन होगा जितना एनडीए के लिए इन्हें बचाना आसान।
