बिहार चुनाव 2025 हेतु JDU ने 101 उम्मीदवारों की सूची जारी की है। इसमें लव-कुश समीकरण साधते हुए कुशवाहा को 13 व कुर्मी को 12 टिकट दिए गए हैं। अति पिछड़ा वर्ग को 37 सीटें और 13 महिलाओं को भी मौका मिला है।
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले जनता दल (यूनाइटेड) ने अपने 101 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। इस सूची में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर अपना पारंपरिक “लव-कुश समीकरण” (कुशवाहा–कुर्मी) साधने की कोशिश की है। नीतीश की इस सूची में जातीय और सामजाइक समीकरण को पूरी तरह से साधने का कोशिश किया गया है।
जेडीयू की लिस्ट में किस जाति के कितने उम्मीदवार
जारी आंकड़ों के अनुसार, सबसे ज्यादा 13 उम्मीदवार कुशवाहा समुदाय से हैं। उनके बाद कुर्मी समाज को 12 टिकट दिए गए हैं। धानुक और यादव समाज से 8-8 उम्मीदवार उतारे गए हैं। इसके अलावा, भूमिहार को 9, राजपूत को 10, और ब्राह्मण समाज को 2 सीटें मिली हैं। अनुसूचित जाति वर्ग से 15 उम्मीदवार, अनुसूचित जनजाति से 1 प्रत्याशी, और अल्पसंख्यक (मुस्लिम) वर्ग से 4 उम्मीदवार को टिकट मिला है। अति पिछड़ा वर्ग से कुल 37 उम्मीदवार बनाए गए हैं, जिनमें मल्लाह, तेली, लोहार, रजक, नाई, सोनार, बढ़ई, पासवान, चंद्रवंशी जैसे समुदाय शामिल हैं।
महिला प्रतिनिधित्व भी बढ़ाया गया
इस बार जेडीयू ने 13 महिलाओं को टिकट दिया है। यह संख्या पिछली बार की तुलना में थोड़ी अधिक है। पार्टी ने कोशिश की है कि हर सामाजिक वर्ग से महिला उम्मीदवारों को भी शामिल किया जाए। नीतीश कुमार के मुताबिक, “महिलाओं की भागीदारी लोकतंत्र की मजबूती की पहचान है, और जेडीयू इसके लिए हमेशा प्रतिबद्ध रहा है।”
नीतीश कुमार का सामाजिक समीकरण वर्गवार देखें तो
- पिछड़ा वर्ग: 37 उम्मीदवार
- अति पिछड़ा वर्ग: 22 उम्मीदवार
- सामान्य वर्ग: 22 उम्मीदवार
- अनुसूचित जाति: 15 उम्मीदवार
- अनुसूचित जनजाति: 1 उम्मीदवार
- अल्पसंख्यक वर्ग: 4 उम्मीदवार
2020 बनाम 2025: क्या बदला नीतीश की लिस्ट में?
साल 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने 115 उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें जातीय बंटवारा इस प्रकार था...
- अतिपिछड़ा वर्ग – 19
- यादव – 18
- कुशवाहा – 15
- कुर्मी – 12
- मुस्लिम – 11
- भूमिहार – 10
- धानुक – 8
- राजपूत – 7
- वैश्य – 3
- ब्राह्मण – 2
- जनजाति – 1
2025 की लिस्ट में मुस्लिम, यादव और भूमिहार प्रत्याशियों की संख्या में कमी आई है, जबकि कुशवाहा, धानुक और अतिपिछड़ा वर्ग की हिस्सेदारी बढ़ाई गई है। नीतीश कुमार का यह दांव साफ तौर पर जातीय संतुलन के साथ-साथ अपने “लव-कुश–धानुक” वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
