सार
रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के मौके पर राज्योत्सव-2024 का भव्य आयोजन किया गया है। इस दौरान कार्यक्रम स्थल पर विभिन्न शासकीय विभागों की विकास प्रदर्शनी लगाई गई है। इस विकास प्रदर्शनी में शिल्पग्राम का स्वरूप भी दिखाया गया है। शिल्पग्राम में छत्तीसगढ़ की कला-संस्कृति की झलक देखने को मिल रही है। रोचकता और रचनात्मकता से भरपूर यह शिल्पग्राम प्रदर्शनी पहुंचने वाले लोगों को स्व-स्फूर्त अपनी ओर आकर्षित कर रही है।
शिल्पग्राम में मौजूद कलाकारों और शिल्पकारों से लोग उनकी रचनात्मकता के संबंध में चर्चा कर रहे हैं और साथ ही उनकी प्रतिभा की भूरी-भूरी प्रशंसा एवं सराहना भी कर रहे हैं।
राज्योत्सव के दौरान लगी प्रदर्शनी स्थल में बनाए गए शिल्पग्राम जनमानस को आकर्षित कर रहा है और उनकी जिज्ञासा का प्रमुख केन्द्र बना हुआ है, जिसमें प्रदेश स्तर के बुनकर शिल्पी अपने-अपने बेहतरीन व आकर्षक उत्पादों का जीवंत प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर आकर्षक छूट के साथ विक्रय भी कर रहे हैं।
शिल्पग्राम में कोसा, रेशमी साड़ी ड्रेस मटेरियल तथा काटन बेडशीट का बेहतरीन संकलन खादी के वस्त्र बेलमेटल, काष्ठ कला, माटी कला टेराकोटा के आकर्षक उपयोगी तथा सजावटी सामग्री का बिक्री कर बुनकरों शिल्पियां ने आयोजन का लाभ उठाया है।
शिल्पकार प्रदेश सरकार व मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय का इस आयोजन हेतु आभार व्यक्त कर रहे हैं, उनका कहना है कि इसके माध्यम से उन्हें अनेक उत्पादों के प्रचार-प्रसार व विक्रय का प्लेटफॉर्म मिला, जिससे इन्हें अच्छी आय हो रही है। इस बार शिल्पग्राम के मध्य में रेशम कीट, तितली कोकून की रंग-बिरंगी मनमोहक कृति स्थापित की गई है। जिसमें सेल्फी लेने लोगों में होड़ मची हुई है।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने मांदर बजाकर वादकों का उत्साह बढ़ाया, परंपरागत वाद्ययंत्रों को सुना
छत्तीसगढ की संस्कृति को संजोकर रखने और उनका प्रचार प्रसार करने के लिए छत्तीसगढ के वाद्ययंत्रों की प्रदर्शनी भी राज्योत्सव में लगाई है। कलाकार श्री रिखी क्षत्रीय ने मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय को मांदर भेंट किया, मुख्यमंत्री ने वादकों के साथ मांदर बजाकर उनका उत्साह वर्धन किया।
श्री रिखी क्षत्रीय ने मुख्यमंत्री को छत्तीसगढ के वाद्ययंत्रों सारंगी, नगाड़ा, मृदुल,चिकारा, कोंडोडका, खनखना, कुतुर्गी, खेती, मुंडाबाजा, हुलकी, मोहरी, तुर्रा, रुंजू, तुरही, मांदरी मांदर, तोड़ी, चरहे, तम्बुरा, बांसबाजा, सींगबाजा, गतका, माडिया ढोल, दमउ, खर्रा, चरहे, चटका, झंडी डंडा, खल्लर, छडी, कोटेला, खडका , सिलफिली, खरताल, अलगोजा, गुदुम बाजा, झुनझुना, डफरा, टिमकी की जानकारी दी । छत्तीसगढ की परम्परागत वाद्ययंत्रों का उपयोग किए जाने और उसकी उपयोगिता से भी परिचित कराया।