PM Modi Birthday: प्रधानमंत्री ने देशभक्ति को केवल राष्ट्रीय पर्वों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि रोजमर्रा का हिस्सा बनाया। गुजरात मॉडल से लेकर राष्ट्रीय एकता दिवस, विभाजन विभीषिका स्मृति और ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ जैसी पहलें भारत को जोड़ने की ताकत बनीं।

जब भारी हथियारों से लैस पाकिस्तानी आतंकवादियों ने पहलगाम में हमला किया और 26 निर्दोष नागरिकों की जान ले ली, तब भारत की प्रतिक्रिया ने उसके लोकतांत्रिक ताने-बाने की मजबूती को दिखा दिया। कश्मीर की बर्फीली चोटियों से लेकर तमिलनाडु के तटीय इलाकों तक, पूरा देश शोक में डूबा और न्याय की मांग के लिए एकजुट हो गया।

इसके बाद पाकिस्तान में हुई सैन्य कार्रवाई केवल ऑपरेशन नहीं रहे, बल्कि राष्ट्रीय शुद्धिकरण के क्षण बन गए। इन पलों में भाषा, क्षेत्र और संस्कृति की सारी दीवारें टूट गईं और सबने साझा संकल्प दिखाया। यह पहली बार नहीं था जब भारत ने पाकिस्तान को जवाब दिया या जब पूरा देश एक स्वर में खड़ा हुआ। बार-बार दुनिया ने देखा है कि आम लोगों के बीच भी एकजुटता भारत की सबसे बड़ी ताकत है।

क्रिकेट से राष्ट्रीय एकता की झलक

यही एकता क्रिकेट मैदानों में भी नजर आई। जब 19 नवंबर 2023 को अहमदाबाद में ऑस्ट्रेलिया ने भारत के विश्व कप सपनों को तोड़ा, तब 1.4 अरब दिल एक साथ टूट गए। उस समय ‘खड़ा हूं आज भी वहीं’ जैसी भावना पूरे देश में गूंजी। लेकिन सात महीने बाद जब भारत ने बारबाडोस में T20 विश्व कप जीता, तो वही सड़कें जो आंसुओं की गवाह बनी थीं, जश्न से भर गईं। मुंबई के मरीन ड्राइव से लेकर दूरदराज के गांवों तक, पूरा देश एक साथ जश्न मनाता दिखा। यह बताता है कि चाहे ग़म हो या खुशी – साझा भावनाएं भारत जैसे विविध लोकतंत्र को जोड़ने का काम करती हैं।

PM मोदी का ‘देशभक्ति अनुष्ठान’ मॉडल

यह एकता अचानक नहीं बनी। यह उस गहरे बदलाव का हिस्सा है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘देशभक्ति अनुष्ठान’ के रूप में व्यवस्थित किया। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए और बाद में प्रधानमंत्री बनने के बाद, मोदी ने समझा कि विविध लोकतंत्र में एकजुटता को बार-बार साझा अनुभवों से नवीनीकृत करना पड़ता है।

गुजरात मॉडल से राष्ट्रीय स्तर तक

गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी ने कई ऐसे प्रयोग किए, जो बाद में राष्ट्रीय कार्यक्रम बने। 2002 से ही गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस केवल राज्य की राजधानी तक सीमित न रहकर जिलों में भी मनाए जाने लगे। इससे आम लोगों को लगा कि दिल्ली केवल दूर नहीं है, बल्कि उनके अपने इलाके में भी देश की झलक है। 2003 में ‘गौरव दिवस’ पहल शुरू हुई, जिसने राष्ट्रीय पर्वों को आम जनता की गरिमा से जोड़ा।

2018 में बनी ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ इस सोच का चरम रूप है। सरदार पटेल की 182 मीटर ऊंची प्रतिमा के निर्माण में देशभर के किसानों ने 1,69,000 गांवों से कृषि औजार दान किए। यह सिर्फ एक प्रतिमा नहीं रही, बल्कि पूरे देश की भागीदारी का प्रतीक बनी।

यह भी पढ़ें

PM मोदी: 11 साल, 78 देश, 92 विदेश यात्राएं...1 जगह तो ऐसी जहां 10 बार जा चुके प्रधानमंत्री

PM मोदी की राष्ट्रीय एकता की पहलें

प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने इन प्रयोगों को राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाया-

  • ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ (2015): राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को आपसी सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए जोड़ा गया।
  • राष्ट्रीय एकता दिवस (2014): सरदार पटेल की जयंती पर हर साल ‘रन फॉर यूनिटी’ का आयोजन, जिसमें लाखों लोग एक ही समय पर भाग लेते हैं।
  • भारत पर्व (2016): गणतंत्र दिवस के समारोह आम नागरिकों तक लाए गए।
  • विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस (14 अगस्त): 1947 की त्रासदी को याद कर सामूहिक पीड़ा को साझा किया गया।
  • संविधान हत्या दिवस: 1975 की आपातकाल की काली छाया को याद कर लोकतंत्र की अहमियत बताई गई।
  • इन आयोजनों ने देशभक्ति को लोकतांत्रिक और सहभागी बनाया। अब लोग केवल दर्शक नहीं, बल्कि सक्रिय भागीदार बने।

‘फेडरल ग्लू’ यानी जोड़ने वाली ताकत

ये सभी पहलें भारत के संघीय ढांचे में गोंद का काम करती हैं-

  • समय की एकरूपता (Temporal Synchronization): लाखों लोग एक साथ देशभक्ति के अनुष्ठानों में हिस्सा लेते हैं, जिससे साझा भावनाएं बनती हैं। उदाहरण: गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर टीवी के सामने बैठा हर घर, अलग-अलग tableaux और सांस्कृतिक झलकियां देखकर गर्व महसूस करता है। कोविड-19 के दौरान पीएम मोदी के आह्वान पर ताली और थाली बजाना भी इसी का उदाहरण है।
  • स्थानिक लोकतंत्रीकरण (Spatial Democratization): राष्ट्रीय उत्सवों को जिलों और गांवों तक लाकर केंद्र और आम लोगों के बीच दूरी घटाई गई।
  • सांस्कृतिक समावेशन (Cultural Inclusion): विविधता को दबाने की बजाय उसका उत्सव मनाया गया।
  • सहभागी नागरिकता (Participatory Citizenship): अब लोग खुद राष्ट्रीय आयोजनों का हिस्सा हैं, सिर्फ दर्शक नहीं।

एकजुटता की ताकत- संकट और खुशी में साथ

उरी, पुलवामा या 2025 के पहलगाम हमले जैसे संकट हों या फिर क्रिकेट की जीत, भारत बार-बार एकजुट खड़ा होता है। हाल ही में #FundKaveriEngine का ट्रेंड इस बात का प्रमाण है कि डिजिटल युग में भी देशवासी मिलकर राष्ट्रीय स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता की मांग उठाते हैं।

‘एवरीडे नेशनलिज़्म’ का विचार

प्रधानमंत्री मोदी की खासियत यही है कि उन्होंने समझा कि विविध लोकतंत्र को साझा अनुभवों से लगातार जोड़ना जरूरी है। उनकी सरकार ने देशभक्ति को केवल कुछ बड़े मौकों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बना दिया। यही ‘एवरीडे नेशनलिज़्म’ है, जो भारत जैसे जटिल लोकतंत्र को एक सूत्र में बांधे रखने का सबसे बड़ा आधार बन चुका है।

यह भी पढ़ें

PM मोदी दुनिया के सबसे पॉपुलर लीडर, लिस्ट में कहां हैं US प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप?