सार
भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा रविवार को शुरू हो गई है। ओडिशा के समुद्र तट स्थित तीर्थ नगरी पुरी में इस वार्षिक रथयात्रा की शुरुआत हो गई है। रथयात्रा में राष्ट्रपति दौपदी मुर्मू भी शामिल होंगी।
पुरी। ओडिशा के समुद्री सीमा पर स्थित तीर्थ नगरी पुरी में रविवार को भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत हुई है। सामान्यत: एक दिन होने वाला यह महोत्सव इस बार और भव्य बनाने के उद्देश्य से दो दिन आयोजित किया जा रहा है। वर्ष 1971 के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है। रथयात्रा में हजारों श्रद्धालुओं के साथ इस बार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी शामिल होने जा रही हैं। ऐसे में मोहन मांझी सरकार ने राष्ट्रपति की यात्रा के लिए विशेष इंतजाम किया है।
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्र रथ में विराजित
भगवान जगन्नाथ के साथ ही उनके भाई बलभद्र औऱ सुभद्रा को रथों में विराजमान कर दिया गया है। अब कुछ ही देर में श्रद्धालु रथों को खींचना शुरू करेंगे। रथ खींचने के लि काफी संख्या में श्रद्धालु भी मौजूद हैं। रथ को जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाएगा।
श्रद्धालु खींचते हैं भगवान जगन्नाथ का रथ
पुरी में निकाली जानी वाली इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ के भारीभरकम रथ को श्रद्धालु ही खींचते हैं। यह पर्व श्रीहरि विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ को समर्पित ओडिशा में आयोजित होने वाला प्रमुख त्योहार है। इस महापर्व पर भगवान जगन्नाथ, उनके भाई-बहन भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियों को भी रथ पर रखा जाता है। इस रथ को हजारों की संख्या में मौजूद भक्तगढ़ ही मोटे रस्से से खींचते हैं। इस रथ को श्रद्धाुओं से ही खींचकर ले जाने की परंपरा है। यह जुलूस जगन्नाथ मंदिर से शुरू होता है और लगभग 3 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए गुंडिचा मंदिर पहुंचकर संपन्न होता है। इसके बाद भगवान का मंदिर में प्रवेश कराया जाता है।
रथयात्रा के लिए सिक्योरिटी अरेंजमेंट्स
ओडिशा सरकार ने रथ यात्रा महोत्सव के दौरान सुरक्षा संबंधी सारे इंतजाम पहले से कर रखे हैं। मंदिर प्रशासन के कर्मचारियों से लेकर पुलिस के अधिकारियों और जवानों तक की पर्याप्त व्यवस्था की गई है। पुरी कलेक्टर सिद्धार्थ शंकर स्वैन के मुताबि आयोजन को लेकर सभी अनुष्ठान सुचारू रूप से चल रहे हैं। भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद लेने हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए हैं और संख्या बढ़ती भी जा रही है। 'नबजौबन दर्शन' से पहले पुजारियों ने 'नेत्र उत्सव' का विशेष अनुष्ठान किया। इसमें देवताओं की आंखों की पुतलियों को नए सिरे से चित्रित किया गया।