Shibu Soren End of an Era: झारखंड के दिशोम गुरु शिबू सोरेन को अंतिम विदाई देने रांची से निमरा तक उमड़ा जनसैलाब। मोरहाबादी आवास पर रखा गया पार्थिव शरीर, बेटे बसंत देंगे मुखाग्नि। राजनीति, संघर्ष और जन चेतना का युग आज विदा ले गया।

Dishom Guru Last Journey: 4 अगस्त 2025, दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल से आई एक दुखद खबर ने पूरे झारखंड को झकझोर दिया। झारखंड आंदोलन के प्रणेता, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और आदिवासी चेतना के प्रतीक शिबू सोरेन ने अंतिम सांस ली। वह पिछले कुछ समय से गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे। उनके निधन से न केवल झारखंड, बल्कि पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई।

मोरहाबादी में अंतिम दर्शन के लिए उमड़ा जनसैलाब

मोरहाबादी स्थित आवास पर उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया, जहां हजारों लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने उमड़ पड़े। राजनीति, सामाजिक चेतना और आदिवासी संघर्ष के इस स्तंभ को "Dishom Guru" के नाम से जाना जाता था। उनका संघर्ष, उनका बलिदान और उनकी आवाज अब स्मृतियों में सिमट गई।

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बेटे बसंत सोरेन देंगे मुखाग्नि-क्या होगी JMM की अगली दिशा? 

बेटे बसंत सोरेन देंगे मुखाग्नि शिबू सोरेन के पार्थिव शरीर को आज उनके पैतृक गांव निमरा ले जाया गया, जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। मुखाग्नि उनके छोटे बेटे बसंत सोरेन देंगे। इस मौके पर सुरक्षाबलों की तैनाती और अंतिम यात्रा की खास व्यवस्था की गई है। राजनीतिक उत्तराधिकार की दृष्टि से शिबू सोरेन का जाना JMM के लिए एक बड़ा मोड़ हो सकता है। इसके साथ ही पार्टी की कमान और भावनात्मक नेतृत्व किसके हाथ में जाएगा, इस पर भी सबकी नजरें टिकी हैं।

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मोंगिया स्टील के CMD ने जताया शोक

राज्य के हर कोने से लोग रांची पहुंचे। आम लोग, कार्यकर्ता, नेता और कई आदिवासी संगठनों ने अंतिम दर्शन कर नम आंखों से विदा दी। इस अवसर पर मोंगिया स्टील के CMD डॉ. गुणवंत सिंह मोंगिया ने भी गहरा दुख व्यक्त करते हुए कहा, “शिबू सोरेन जी का निधन एक युग का अंत है। वे झारखंड की आत्मा थे।”

 क्या झारखंड को मिलेगा एक और दिशोम गुरु? 

दिशोम गुरु शिबू सोरेन का जाना एक युग का अंत है। सवाल यह भी है कि क्या अब झारखंड को उनके जैसा कोई और जननायक मिलेगा? Shibu Soren Funeral भले ही आज पूरा हो जाए, पर उनका संघर्ष, विचार और आदिवासी चेतना की लौ सदैव जलती रहेगी। झारखंड की राजनीति में अपूरणीय क्षति शिबू सोरेन सिर्फ एक राजनेता नहीं थे, वो एक विचारधारा थे। आदिवासी अधिकारों की लड़ाई, राज्य गठन आंदोलन और झारखंड की पहचान को राष्ट्रीय स्तर तक ले जाने में उनका ऐतिहासिक योगदान रहा है। उनकी कमी लंबे समय तक महसूस की जाएगी।

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