सार
18 साल से लगातार सत्ता में रहने वाली बीजेपी को हराने में कांग्रेस एक बार फिर असफल साबित हुई है। रिजल्ट से पहले जीत के बड़े-बड़े दावे कर रही कांग्रेस की हार के एक नहीं बल्कि कई कारण हैं। आइए डालते हैं कांग्रेस की हार की बड़ी वजहों पर एक नजर।
Congress defeat Big Reason in Madhya pradesh Assembly Election 2023: मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को BJP के हाथों एक बार फिर करारी शिकस्त मिली है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा, जन आक्रोश रैली, कांग्रेस की 11 गारंटी और नारी सम्मान जैसी स्कीम का जादू भी नहीं चल पाया। आखिर क्या हैं वो वजहें कि 18 साल से लगातार सत्ता में रहने वाली बीजेपी को हराने में कांग्रेस एक बार फिर असफल साबित हुई।
1- भ्रम में रही कांग्रेस नहीं पहुंची जनता के बीच
कांग्रेस ने पूरा चुनाव जनता के भरोसे छोड़ दिया। कमलनाथ ने खुद कहा कि सवाल कांग्रेस के भविष्य का नहीं बल्कि मध्य प्रदेश के भविष्य का है। कांग्रेस हमेशा इस भ्रम में रही कि जनता BJP से नाराज है और वो प्रदेश में बदलाव चाहती है।
2- महिलाओं को साधने में विफल रही
शिवराज सिंह की लाडली बहना योजना की तरह कांग्रेस के पास महिला वोटर्स को लुभाने के लिए कोई खास योजना नहीं थी। प्रियंका गांधी ने मध्य प्रदेश में सभाएं कीं, लेकिन जनता खासकर महिलाओं को साधने में पूरी तरह विफल रही।
3- कांग्रेस के नेताओं में आपसी खींचतान
कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में आपसी खींचतान भी हार की एक प्रमुख वजह बना। कई बार मंच पर खुलकर एक-दूसरे के खिलाफ बोलते दिखे। कांग्रेस नेता एकजुट होने की बजाय बिखरे और अलग-थलग दिखे। खासकर बड़े नेताओं के रवैये का असर जमीनी कार्यकर्ताओं पर पड़ा।
4- अकेले जूझते रहे कमलनाथ
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से कमलनाथ अकेले ही जूझते दिखे। पार्टी के दिग्गज नेताओं में शुमार अरुण यादव, सुरेश पचौरी, दिग्विजय सिंह उतने एक्टिव नजर नहीं आए। वहीं, अजय सिंह राहुल, नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह, कमलेश्वर पटेल, जीतू पटवारी जैसे नेता अपने ही क्षेत्रों में उलझे रहे।
5- कांग्रेस का लचर संगठन
जमीनी स्तर पर कांग्रेस का संगठन काफी सुस्त और कमजोर दिखा। न तो पार्टी के नेताओं ने सीधे जनता से संवाद किया और ना ही अपनी योजनाओं को आम जनता को समझाने में कामयाब रहे। कुल मिलाकर कांग्रेस संगठन वोटर तक अपनी बात नहीं पहुंचा पाया।
6. नेतृत्व में विश्वास की कमी
भारत जोड़ो यात्रा से भले ही राहुल गांधी ने आम लोगों से जुड़ कर एक बड़े नेता के तौर पर उभरने की कोशिश की, लेकिन हकीकत में वो जनता को अपने पक्ष में नहीं कर पाए। कांग्रेस नेताओं के नेतृत्व में विश्वास की कमी भी दिखी, जिसका फायदा बीजेपी ने उठाया।
7. अंदरूनी गुटबाजी
कांग्रेस पार्टी में इस बार भी अंदरूनी गुटबाजी नजर आई। टिकट बंटवारे को लेकर भी कांग्रेस के बड़े नेता अपने-अपने लोगों को टिकट दिलवाने में लगे रहे। कांग्रेस में दिग्विजय गुट, कमलनाथ गुट, पचौरी गुट, अरुण यादव और जीतू पटवारी गुट दिखे।
8. बेमतलब की बयानबाजी
कांग्रेस नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए 'पनौती' शब्द का इस्तेमाल किया, जिसका उल्टा असर पड़ गया। वहीं, भाजपा ने कांग्रेस की इस कमजोरी को भुनाते हुए इसे अपने फेवर में किया। इसी तरह कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने मोदी को झूठों का सरदार बताया था। इस तरह की बयानबाजी का नुकसान भी कांग्रेस को उठाना पड़ा।
9- यूथ लीडर्स का कोई बैकअप नहीं
कांग्रेस में यूथ लीडर्स का बैकअप नहीं बन पाया। केवल विक्रांत भूरिया यूथ कांग्रेस अध्यक्ष हैं, जो कांतिलाल भूरिया के बेटे और पेशे से डॉक्टर हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने की बड़ी वजह भी यही थी कि कांग्रेस में युवा नेताओं को तरजीह नहीं मिल रही थी।
10- कमलनाथ का कार्यकर्ताओं को समय न देना
विश्लेषकों का मानना है कि कमलनाथ नेता कम और किसी बड़ी कंपनी के मैनेजर ज्यादा लगते हैं। वो पॉलिटिकल बैठकों में भी कार्पोरेट मीटिंग जैसा व्यवहार करते रहे। यहां तक कि अपने विधायकों और कार्यकर्ताओं को मिलने का वक्त भी बहुत कम देते थे। इससे कार्यकर्ताओं में अपने नेता के प्रति ही असंतोष पनपने लगा।
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