मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि हरदा जल्द ही मध्यप्रदेश का पहला शत-प्रतिशत सिंचित जिला बनेगा। 756 करोड़ की परियोजना से 39,976 हेक्टेयर भूमि को लाभ मिलेगा। राज्यभर में सिंचाई परियोजनाएं तय समय में पूरी करने के निर्देश दिए गए हैं।

भोपाल। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि मध्यप्रदेश एक बार फिर इतिहास रचने जा रहा है। जल्द ही हरदा जिला प्रदेश का पहला शत-प्रतिशत सिंचित जिला बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। यह उपलब्धि शहीद ईलाप सिंह माइक्रो उद्वहन सिंचाई परियोजना के जरिए संभव होगी।

756 करोड़ की परियोजना से मिलेगा स्थायी सिंचाई का लाभ

करीब 756.76 करोड़ रुपये की लागत वाली यह परियोजना हरदा जिले के 39,976 हेक्टेयर रकबे में स्थायी सिंचाई सुविधा प्रदान करेगी। पिछले 16 महीनों में परियोजना का 42% कार्य पूरा हो चुका है। इसके पूर्ण होने पर तवा सिंचाई परियोजना के अंतिम छोर (टेल एंड एरिया) तक रबी फसलों के लिए पर्याप्त पानी पहुंचेगा, जिससे उन किसानों को भी लाभ मिलेगा जिन्हें पहले सिंचाई की सुविधा नहीं थी। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश के एक करोड़ हेक्टेयर कृषि रकबे को सिंचित करना सरकार का प्राथमिक लक्ष्य है और यह कार्य योजनाबद्ध तरीके से जारी है।

नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण की बैठक में हुई अहम मंजूरी

डॉ. यादव सोमवार को मंत्रालय में हुई नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण की 268वीं, नर्मदा नियंत्रण मंडल की 85वीं और नर्मदा बेसिन प्रोजेक्ट्स कंपनी लिमिटेड की 33वीं बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे। बैठक में विभिन्न परियोजनाओं के प्रस्तावों और उनके प्रावधानों को मंजूरी दी गई।

परियोजनाओं को समय-सीमा में पूरा करने के निर्देश

मुख्यमंत्री ने सभी सिंचाई परियोजनाओं और जल संरक्षण संरचनाओं की अद्यतन स्थिति की समीक्षा की। उन्होंने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए कि किसी भी परियोजना की समय-सीमा नहीं बढ़ाई जाए और सभी कार्य निर्धारित समय पर पूर्ण हों। साथ ही, एशियन और इंटरनेशनल मौद्रिक संस्थाओं से बेहतर समन्वय कर वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के निर्देश दिए।

नियमित मॉनिटरिंग और केंद्र से समन्वय पर जोर

मुख्यमंत्री ने कहा कि सिंचाई सुविधाओं से जुड़ी सभी परियोजनाओं की नियमित मॉनिटरिंग की जाए। वरिष्ठ अधिकारी केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के साथ सतत समन्वय बनाए रखें और तय लक्ष्यों की दिशा में फोकस्ड होकर कार्य करें।

उन्होंने कहा कि सिंहस्थ 2028 को ध्यान में रखते हुए उज्जैन में शिप्रा नदी के घाटों और जल संरचनाओं के निर्माण कार्य दिसंबर 2027 तक पूरे कर लिए जाएं। उज्जैन में गौशाला, घाट और धर्मशालाओं के निर्माण में धार्मिक संस्थाओं और कंपनियों के CSR फंड से सहयोग लेने की भी बात कही।

जनजातीय क्षेत्रों में 2 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित

जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट ने बताया कि बीते दो वर्षों में हरदा, बड़वानी और धार जिलों के जनजातीय अंचलों में लगभग 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। इन परियोजनाओं पर कुल 6,640 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं, जिससे लगभग 600 गांवों के किसान लाभान्वित हुए हैं। मुख्यमंत्री ने विभाग को इस उत्कृष्ट कार्य के लिए बधाई दी और कहा कि यह प्रदेश के समग्र विकास की दिशा में बड़ा कदम है।

प्रमुख परियोजनाओं की प्रगति समीक्षा

अपर मुख्य सचिव जल संसाधन डॉ. राजेश राजौरा ने बताया कि

  • स्लीमनाबाद टनल एलाइनमेंट का काम लगभग पूरा हो चुका है और यह 31 जनवरी 2026 तक पूरा हो जाएगा।
  • परियोजना पूरी होने पर क्षेत्र कृषि उत्पादन में अग्रणी बन जाएगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि उज्जैन के बड़नगर क्षेत्र को पार्वती, कालीसिंध और चंबल राष्ट्रीय नदी लिंक परियोजना में शामिल किया जाए। साथ ही चित्रकूट-मंदाकिनी नदी पर मध्यप्रदेश-उत्तरप्रदेश संयुक्त सिंचाई परियोजना के लिए यूपी सरकार से समन्वय स्थापित करने को कहा।

ताप्ती मेगा रिचार्ज और अन्य परियोजनाएं

मुख्यमंत्री ने ताप्ती मेगा रिचार्ज परियोजना की भी समीक्षा की और कहा कि राज्य के हिस्से का पूरा जल सिंचाई और पेयजल आपूर्ति में उपयोग किया जाए। अपर मुख्य सचिव ने बताया कि बड़नगर, नीमच और जावद सहित अन्य क्षेत्रीय परियोजनाओं के 12,000 करोड़ रुपये के प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजे गए हैं। केंद्र ने DPR (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) मांगी है। स्वीकृति मिलने पर यह केन-बेतवा राष्ट्रीय नदी लिंक परियोजना का हिस्सा बनेगी।

उन्होंने बताया कि-

  • नर्मदा-झाबुआ-पेटलावद-थांदला-सरदारपुर परियोजना का 96% कार्य पूरा हो चुका है।
  • आईएसपी-कालीसिंध उद्वहन माइक्रो परियोजना का भी 96% काम पूरा हो चुका है और 31 दिसंबर 2025 तक समाप्त हो जाएगा।
  • डही उद्वहन परियोजना का 95% कार्य पूरा है, शेष 30 जून 2026 तक पूरा होगा।
  • सेंधवा (बड़वानी) माइक्रो उद्वहन सिंचाई परियोजना से 29 गांवों के 9,855 हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई मिलेगी।
  • निवाली उद्वहन परियोजना से 92 गांवों की 33,000 हेक्टेयर भूमि सिंचित होगी।
  • मां रेवा उद्वहन परियोजना (देवास) से बारना परियोजना के अंतिम छोर तक पानी पहुंचाया जाएगा।