इंदौर में 12 वर्षीय बच्ची घर छोड़कर साउथ काेरिया जाने की कोशिश में बस स्टैंड पर अकेली मिली। पुलिस ने तुरंत पकड़कर सुरक्षित परिवार को सुपुर्द किया। सोशल मीडिया और K-pop का बच्चों पर असर कितना खतरनाक हो सकता है, यह मामला सबके होश उड़ा देने वाला है।
Indore News Runaway Girl: इंदौर से एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है। 12 साल की एक बालिका, जो सोशल मीडिया पर South Korean कलाकारों की बड़ी फैन थी, अचानक घर से गायब हो गई। उसकी यह हरकत देखकर पुलिस भी हैरान रह गई। बालिका घर छोड़कर सीधे South Korea जाने की योजना बना रही थी। यह घटना मोबाइल और इंटरनेट के बच्चों पर बढ़ते प्रभाव का एक जीवंत उदाहरण बन गई है।
कैसे पुलिस को मिली बच्ची की जानकारी?
बालिका को बस स्टैंड के पास अकेले घूमते हुए एक बस चालक ने देखा। चालक ने तुरंत पुलिस को जानकारी दी। महिला पुलिसकर्मियों की टीम मौके पर पहुंची और बच्ची को थाने ले आई। पूछताछ में बच्ची ने बताया कि वह बिना माता-पिता को बताए महू से इंदौर आई थी। उसका इरादा वहां से बस पकड़कर South Korea जाने का था। बच्ची को लगा कि सरवटे बस स्टैंड से सीधे कोरिया जाने वाली बस मिल जाएगी।
सोशल मीडिया का प्रभाव और बच्चों की इच्छाएं
बच्ची ने पुलिस को बताया कि वह स्कूल में पढ़ाई कर रही है, लेकिन K-pop स्टार्स की लाइफस्टाइल और सोशल मीडिया पर उनके जीवन से इतनी प्रभावित थी कि उनसे मिलने का सपना देखा। इस घटना ने यह साफ कर दिया कि डिजिटल दुनिया और सोशल मीडिया का बच्चों पर गहरा असर पड़ता है।
परिवार की जानकारी और सुरक्षित वापसी
प्रारंभिक जांच में बच्ची ने खुद को खरगोन की निवासी बताया, लेकिन वहां से कोई गुमशुदगी रिपोर्ट नहीं मिली। गहन पूछताछ के बाद पता चला कि बच्ची एक महीने पहले परिवार के साथ महू के बडगोंदा गांव में शिफ्ट हुई थी। पुलिस ने परिवार से संपर्क किया और बच्ची को सकुशल उसके घर सुपुर्द किया। परिजनों ने राहत की सांस ली और पुलिस का आभार जताया।
क्या मोबाइल और सोशल मीडिया बच्चों के निर्णय पर असर डाल रहे हैं?
इस घटना ने यह सवाल उठाया कि क्या सोशल मीडिया और मोबाइल बच्चों के जीवन और फैसलों पर इस हद तक प्रभाव डाल सकते हैं। बच्चे डिजिटल कंटेंट से प्रभावित होकर अविवेकपूर्ण फैसले ले सकते हैं।
सबक और आगे की जरूरत
थाना प्रभारी संजू कामले ने कहा कि बच्चों की सुरक्षा के लिए माता-पिता को डिजिटल दुनिया और सोशल मीडिया के प्रभाव से सावधान रहना चाहिए। साथ ही, बच्चों के मनोभाव और इच्छाओं को समझना भी जरूरी है, ताकि ऐसे खतरनाक कदम उठाने से रोका जा सके।
