Mama Bhanja Shivling story: खरगोन में मौजूद गौरी सोमनाथ मंदिर में 9 फीट ऊंचा शिवलिंग है, जिसे सिर्फ मामा-भांजा ही बाहों में समेट सकते हैं! सदियों पुरानी यह मान्यता आज भी रहस्य बनी हुई है। सावन में यहां श्रद्धा का सैलाब उमड़ता है।
Gauri Somnath Temple Khargone: मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के चोली गांव में स्थित गौरी सोमनाथ मंदिर न सिर्फ अपनी ऐतिहासिकता बल्कि रहस्यमयी मान्यताओं के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां स्थित शिवलिंग 9 फीट ऊंचा है और इसे सिर्फ सगे मामा और भांजा ही अपनी बाहों में समेट सकते हैं। इसी मान्यता के कारण यह मंदिर "मामा-भांजा मंदिर" के नाम से भी जाना जाता है।
9 फीट ऊंचा शिवलिंग: क्यों है इतना खास?
इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग लगभग 9 फीट ऊंचा है, जिसे देखने के लिए भक्तों को सीढ़ियों से ऊपर चढ़कर दर्शन करना होता है। माना जाता है कि यह मध्यप्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा शिवलिंग है, जो भोजपुर के शिवलिंग के बाद आता है।
सिर्फ मामा-भांजा ही क्यों कर सकते हैं स्पर्श?
ग्रामीणों का दावा है कि इस शिवलिंग को केवल सगे मामा और भांजा ही अपनी बाहों में समेट सकते हैं, बाकी कोई और यह नहीं कर पाया। यही वजह है कि इसे स्थानीय लोग ‘मामा-भांजा शिवलिंग’ भी कहते हैं। यह रहस्य आज भी श्रद्धालुओं को हैरान करता है।
क्या है गौरी सोमनाथ मंदिर का इतिहास?
हालांकि मान्यता है कि यह शिवलिंग पांडवों द्वारा वनवास काल में स्थापित किया गया था, लेकिन पुरातत्व विभाग के अनुसार मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में परमार वंश के शासनकाल में नागर शैली में हुआ था। यह एक राज्य संरक्षित स्मारक है जिसकी चारों ओर सुरक्षा दीवारें और गार्ड भी तैनात हैं।
अधूरी मूर्तियां और मंदिर का वास्तु है रहस्य
मंदिर के भीतर अधूरी नंदी और कछुए की प्रतिमा मौजूद हैं। मान्यता है कि इन मूर्तियों का निर्माण छह माह की रातों में हुआ था लेकिन सुबह होने से निर्माण अधूरा रह गया। कछुए की प्रतिमा भी एक दुर्लभ विशेषता है, जो शिव मंदिरों में कम देखने को मिलती है।
औरंगजेब का हमला और पुनर्निर्माण
इतिहासकारों के अनुसार, औरंगजेब की सेना ने दिल्ली कूच के दौरान इस मंदिर पर हमला किया था, जिससे सभा मंडप क्षतिग्रस्त हो गया। बाद में 17वीं शताब्दी में रानी कृष्णा बाई होलकर ने इसका जीर्णोद्धार करवाया और दीवारों पर रासलीला के चित्र बनवाए।
क्या गौरी सोमनाथ मंदिर पांडवकालीन है?
ग्रामीणों की मान्यता है कि यह पांडवकाल में बना था, लेकिन पुरातत्व विभाग इसे परमार वंशकालीन बताता है। सावन के सोमवार को इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। यहां रुद्राभिषेक, जलाभिषेक, मंत्र जाप और विशेष डोला यात्रा का आयोजन होता है। पूरा मंदिर परिसर भक्ति के रंग में रंग जाता है।
