Malegaon Blast: 2008 मालेगांव ब्लास्ट केस में सभी सात आरोपियों की रिहाई के बाद पूर्व ATS अधिकारी मेहबूब मुजावर ने दावा किया कि उन्हें RSS प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश मिला था। जानें पूरा मामला।

Mohan Bhagwat Arrest Order: 2008 के मालेगांव बम धमाके (Malegaon Blast) मामले में सातों आरोपियों को बरी किए जाने के एक दिन बाद, महाराष्ट्र एटीएस (ATS) में तैनात रहे पूर्व अधिकारी मेहबूब मुजावर ने एक चौंकाने वाला दावा किया है। मुजावर ने आरोप लगाया कि उन्हें उस समय RSS प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया था।

‘सांप्रदायिक रंग देने की थी कोशिश’

मुजावर के मुताबिक, उस समय के मुख्य जांच अधिकारी परमबीर सिंह ने उन्हें भागवत की गिरफ्तारी का निर्देश दिया था जिससे मामले को ‘भगवा आतंकवाद’ (Saffron Terror) का रंग दिया जा सके। उन्होंने कहा कि मुझे साफ कहा गया था कि मोहन भागवत को केस में शामिल करना है ताकि यह एक हिंदू आतंकवाद का मामला लगे।

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'फर्जी जांच का विरोध किया तो झूठे केस हुए'

मुजावर का कहना है कि उन्होंने इस फर्जी जांच का विरोध किया था जिसके चलते उनके खिलाफ झूठे केस दर्ज कर दिए गए। उन्होंने कहा कि मैंने सच्चाई के खिलाफ जाने से इनकार कर दिया इसलिए मुझे निशाना बनाया गया। बाद में सभी आरोपों से मेरा नाम हटा दिया गया।

NIA और अदालत की टिप्पणी

2008 के मालेगांव बम धमाके में छह लोगों की मौत हुई थी। यह धमाका रमज़ान के महीने में और नवरात्र से ठीक पहले हुआ था। जांच पहले महाराष्ट्र ATS के पास थी, बाद में NIA को सौंप दी गई। 2024 में समाप्त हुए ट्रायल में 323 गवाह पेश किए गए जिनमें से 37 पलट गए। कोर्ट ने कहा कि बम धमाका साबित हुआ लेकिन यह नहीं साबित हो सका कि विस्फोटक मोटरसाइकिल में लगाया गया था।

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परमबीर सिंह के खिलाफ खुद लगे थे आरोप

परमबीर सिंह को दिसंबर 2021 में मुंबई पुलिस कमिश्नर के रूप में कथित भ्रष्टाचार के आरोपों पर निलंबित कर दिया गया था। बाद में उन्होंने तत्कालीन गृहमंत्री अनिल देशमुख पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, जिसके चलते देशमुख को जेल जाना पड़ा। खुद सिंह पर भी राज्य सरकार ने वसूली के कई केस दर्ज किए थे, जिन्हें 2023 में शिंदे सरकार ने हटा लिया।

राजनीतिक प्रतिक्रिया: देवेंद्र फडणवीस का बयान

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि 2008 की साजिश अब बेनकाब हो चुकी है। उस वक्त की सरकार ने ‘हिंदू टेरर’ और ‘भगवा आतंकवाद’ जैसे शब्द गढ़े ताकि इस्लामिक टेरर के बहस को दबाया जा सके और वोटबैंक को नाराज़ न किया जाए।