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मां ने मिट्टी के बर्तन बनाए, पिता ने ट्रक चलाया...अब बेटा आखिरी चांस में बना IAS, घर पर लाइट तक नहीं थी
जज्बा और जुनून हो तो इंसान को कामयाब बनने से कोई नहीं रोक सकता है। ऐसी ही एक कहानी राजस्थान के ही नागौर जिले के रहने वाले पवन कुमार की है। जिसके पिता ट्रक ड्राइवर थे और मां मिट्टी के बर्तन बनाती थीं। इतनी परेशानियों के बाद भी बेटा IAS बन गया।
| Published : Mar 05 2023, 11:20 AM IST / Updated: Mar 05 2023, 11:21 AM IST
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जयपुर. जिस बच्चे के पिता ट्रक चलाने का काम करते हो और मां पूरे दिन बैठकर मिट्टी के बर्तन बनाती हो उसके बेटे की सफलता का अंदाजा हम यहां तक लगा सकते हैं कि वह डॉक्टर या इंजीनियर बन गया हो लेकिन राजस्थान में एक ऐसा आईएएस अफसर है जिसकी संघर्ष की कहानी का आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते। हम बात कर रहे हैं राजस्थान के ही नागौर जिले के रहने वाले आईएएस पवन की। जो नागौर के सोमना गांव के रहने वाले हैं...
आपको बता दें कि आईएएस पवन कुमार के पिता ट्रक चलाने और मां मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करती थी। पांचवी क्लास तक की पढ़ाई तो पवन ने अपने गांव से ही पूरी की। लेकिन उसके बाद बेटे की अच्छी पढ़ाई के लिए पिता नागौर शहर में आ गए और यहां उन्होंने ट्रक चलाना शुरु किया और फिर पवन का दाखिला एक प्राइवेट स्कूल में करवा कर उसकी पढ़ाई करवाई। स्कूलिंग पूरी होने के बाद पवन कुमार जयपुर की डेंटल कॉलेज से डिग्री ली।
डिग्री लेने के बाद लगातार पवन ने मेहनत करना शुरू किया। सबसे पहले वह बीएसएफ में असिस्टेंट कमांडेंट की पोस्ट पर नौकरी लगे और इसके बाद राजस्थान प्रशासनिक सेवा में। लेकिन उनका लक्ष्य तो था और बेहतर करने का सपना। इसके बाद उन्होंने साल 2015 में पहली बार आरएएस एग्जाम दिया तो उनके 568 वीं रैंक आई और फिर दूसरी बार में साल 2018 में 308 वी रैंक आई। इसके बाद 2021 में उन्होंने यूपीएससी का एग्जाम दिया। और 551 वीं रैंक मिली।
पवन बताते हैं कि आईएएस अफसर बनने के लिए उन्हें करीब 10 साल का समय लगा। साल 2013 में उन्होंने सिविल सर्विसेस एग्जाम में लेना शुरू किया ओबीसी कैंडिडेट को एग्जाम देने के लिए कुल 9 मौके मिलते हैं। पवन का सिलेक्शन आखिरी चांस में हुआ। हालांकि हर बार उन्होंने प्रीवियस एग्जाम तो पास किया लेकिन इंटरव्यू तक नहीं पहुंचे।
हालांकि पवन का कहना है कि भारत में हिंदी का प्रचलन लगातार बढ़ता जा रहा है लेकिन यूपीएससी एग्जाम में यह एक बड़ी बाधा है क्योंकि इसमें जो हिंदी माध्यम में हिस्सा लेता है वह धारा के विपरीत चलता है। एग्जाम में पहले जहां 5 % हिंदी मीडियम स्टूडेंट्स पास हुआ करते थे वह अब केवल 2% तक रह गए हैं। पवन ने कहा कि भले ही हमें हिंदी अच्छी लगती हो लेकिन अन्य भाषाओं पर भी हमारी पकड़ होनी चाहिए।