Trirupi Krishna Darshan: जन्माष्टमी पर राजस्थान में एकमात्र त्रिरूपी दर्शन परंपरा निभती है। भक्त एक ही दिन करौली मदन मोहनजी, जयपुर गोपीनाथ कटिर्भाग,  गोविंददेवजी मंदिर के मुखारविंद के दर्शन करते हैं। 3 स्थान पर श्रीकृष्ण का पूर्ण स्वरूप विराजमान है  

Happy Janmashtami 2025 : जन्माष्टमी के अवसर पर राजस्थान में एक ऐसी अनूठी परंपरा देखने को मिलती है, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक आनंद से भर देती है। करौली, जयपुर की पुरानी बस्ती और गोविंददेवजी मंदिर में भक्तों को एक ही दिन श्रीकृष्ण के तीन स्वरूपों के पूर्ण दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है। इस अद्वितीय संयोग को त्रिरूपी दर्शन कहा जाता है। इन तीनों मंदिर में श्रीकृष्ण का कहीं सिर तो कहीं धड़ और कहीं चरण विराजमान हैं, जिनकी एक ही दिन में पूजा करना भक्तों के लिए विशेष महत्व माना जाता है।

एक ही दिन में पूर्ण दर्शन की अद्भुत परंपरा

  • करौली का प्रसिद्ध मदन मोहनजी मंदिर है। यहां ठाकुरजी के चरण दर्शनों की विशेष मान्यता है। भक्त मानते हैं कि यह चरण स्वयं श्रीकृष्ण के चरणों जैसे ही हैं और इनके दर्शन मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
  •  दूसरा तीर्थ जयपुर की पुरानी बस्ती स्थित गोपीनाथजी का कटिर्भाग है। परंपरा के अनुसार गोपीनाथजी की प्रतिमा का कटिर्भाग (कमर से ऊपर का हिस्सा) वैसा ही है जैसा बृज में विराजमान श्रीकृष्ण का स्वरूप माना जाता है।
  • तीसरा और अंतिम तीर्थ है जयपुर के प्रसिद्ध गोविंददेवजी मंदिर। यहां ठाकुरजी का मुखारविंद दर्शन होता है। भक्त मानते हैं कि यह वही स्वरूप है, जिसे स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भक्तों को अपनी झलक देने के लिए प्रकट किया था।

यह भी पढ़ें krishna janmashtami 2025 : श्रीकृष्ण का दुनिया का पहला ऐसा मंदिर, जहां चढ़ता अफीम का प्रसाद

अद्भुत संगम पर लाखों की भीड़ 

  • जन्माष्टमी के दिन इन तीनों स्वरूपों के दर्शन का दुर्लभ संयोग बनता है। करौली से लेकर जयपुर तक हजारों श्रद्धालु यात्रा करते हैं और तीनों तीर्थों पर जाकर पूर्ण दर्शन की परंपरा निभाते हैं। इसे ही त्रिरूपी दर्शन कहा जाता है।
  • मंदिरों की मान्यता है कि यह परंपरा दादी नामक एक श्रद्धालु महिला ने स्थापित की थी। कहा जाता है कि दादी ने विरक्त होकर संपूर्ण श्रीकृष्ण स्वरूप की झलक पाने की इच्छा जताई थी। तब से यह परंपरा हर जन्माष्टमी पर निभाई जा रही है।

आस्था और विश्वास का अद्वितीय पर्व 

  • लाखों श्रद्धालु इस दिन उपवास रखते हैं और तीनों स्थानों पर दर्शन करने के बाद ही व्रत पूर्ण करते हैं। मंदिरों में विशेष झांकियां सजाई जाती हैं, भजन-कीर्तन गूंजते हैं और भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है।
  • इस तरह एक ही दिन तीन स्वरूपों के दर्शन कर भक्त मानते हैं कि उन्हें स्वयं वृंदावनधाम जैसा आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त हुआ है।