सार

राजस्थान के अलवर शहर में मुस्लिम समाजजनों ने मुहर्रम के एक दिन पहले ही ताजियों का जुलूस निकाल लिया। इसे शहर में हिंदू मुस्लिम कौमी एकता की मिसाल के रूप में देखा जा रहा है। क्योंकि बुधवार से यहां भगवान जगन्नाथ मेले की शुरुआत हो गई है।

अलवर. जहां देशभर में 17 जुलाई को मोहर्रम मनाया गया। हर जगह बुधवार को मोहर्रम के ताजियों का जुलूस निकल रहा है। वहीं राजस्थान के अलवर शहर में मुस्लिम समाज ने एक दिन पहले ही 16 जुलाई को ताजियों का जुलूस निकाल लिया। ताकि हिंदू समाज भी भगवान जगन्नाथ के पांच दिवसीय मेले का आयोजन अच्छे से कर सके। मुस्लिम समाज के इस सराहनीय कदम की पूरे राजस्थान में वाह वाही हो रही है।

मोहर्रम का जुलूस निकाला

दरअसल हर साल की तरह इस साल भी अलवर शहर से होकर जूलूस निकाला गया। लेकिन इस साल मुहर्रम के दिन ही भगवान जगन्नाथ का मेला शुरू होना है जो अगले चार से पांच दिन जारी रहेगा। इस मेले में राजस्थान के कई शहरों के लोग शामिल होते हैं और ये मेला शहर के अंदर लगता है। इसमें लाखों की संख्या में लोग आते हैं। इस साल भी यह मेला लगाया जा रहा है।

जहां से निकलने थे ताजिए वहां मेला

जिस जगह पर मेला लगाया जा रहा है। वहां से आज यानी बुधवार को मुहर्रम का जूलूस निकलना था, लेकिन भीड़ और परेशानी के कारण इस बार मुस्लिम समाज ने एक दिन पहले ही यानी मंगलवार को ही ताजिया का जूलूस निकाल लिया। यह जूलूस शहर के बीचों बीच से निकला और उसके बाद ताजियों को कर्बला मैदान पहुंचा दिया गया। फिर समाज के कुछ लोग वहां ताजियों की सुरक्षा के लिए ठहरे और अन्य वहां से चले गए।

कर्बला में सुपुर्द ए खाक होंगे ताजिए

अब आज रात को समाज के लोग सीधे ही कर्बला मैदान पहुंचेंगे और ताजियों को सुपुर्दे ए खाक किया जाएगा। बताया जा रहा है कि पहले ये आयोजन आज ही के दिन रखा गया था। समाज का कहना था कि वे लोग शहर के बाहरी हिस्सों से ताजिया ले जाएंगे, लेकिन बाद में जब हिंदु समाज के लोगों ने ताजिया निकालने वाले समाज के बड़े लोगों से बातचीत की तो उन्होनें ताजिया एक दिन पहले ही निकालने की हांमी भर दी और कल रात ताजिया निकाल लिए गए।

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यहां से निकलते हैं ताजिये

अलवर में बड़ा ताजिया मेव बोर्डिंग से और छोटा ताजिया नंगली मोहल्ले से निकाला जाता है। इसके अलावा छोटे और बड़े मिलाकर करीब बीस से भी ज्यादा ताजियां निकाले जाते हैं जिनमें हजारों की संख्या में समाज के लोग शामिल होते हैं। ये ताजिया शहर के बीचों बीच मस्जिदों और दरगाहों के आगे से ले जाए जाते हैं। इस दौरान पट्टे और कलाबाज, तलवारबाजी, लाठी चलाना और अन्य हुनर पेश करते हैं।

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