सार

जयपुर के आमेर किले का शीशमहल अपनी अनोखी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। एक दीपक की रोशनी में हज़ारों जुगनू जैसे चमकते कांच के टुकड़े इसे अद्भुत बनाते हैं। रानी के सितारों को देखने की ख्वाहिश से बना यह महल आज भी पर्यटकों को आकर्षित करता है।

जयपुर. आज 18 नवंबर को राजधानी जयपुर शहर 297 साल का हो चुका है। आज ही के दिन 1727 में की स्थापना हुई थी।जब भी जयपुर की बात आती है तो यहां दिल्ली रोड पर स्थित आमेर किले की बात जरूर होती है। जहां हर साल लाखों पर्यटक घूमने के लिए आते हैं। यह किला राजधानी जयपुर शहर से करीब 11 किलोमीटर दूर है। इस किले में स्थित शीशमहल और वास्तुकला किसी को का भी मन मोह लेती है।

एक दीपक जलने से ऐसा लगता जैसे हजारों जुगनू एक साथ

यहां बना शीश महल ढाई करोड़ रंग-बिरंगे कांच के टुकड़ों से तैयार हुआ है। यहां तक की फर्श भी कांच का है। इस महल को इस तरह से तैयार किया गया है कि यदि रात के समय या अंधेरे में यहां एक दीपक जला दिया जाए तो उस दीपक की रोशनी कांच पर ऐसी लगेगी मानो पूरे महल में हजारों जुगनू एक साथ आ गए हैं।

रात को रानी की एक ख्वाहिश के लिए बना था शीशमहल

मान्यता है कि उस दौरान रानी की ख्वाहिश थी कि वह रात को सोते समय महल के अंदर से सितारों को देखें। इसलिए ही इस शीश महल का निर्माण हुआ। यहां दो मोमबत्ती भी जला दे तो ऐसा लगता है मानो हजारों सितारे दिख रहे हैं। इस किले का निर्माण महाराजा मानसिंह के द्वारा करवाया गया था। वर्तमान में इस किले की देखरेख सरकार के द्वारा की जाती है। बकायदा इसके लिए एक बोर्ड भी बनाया हुआ है।

जानिए जयपुर सिटी पैलेस के फैक्ट

अगर कोई जयपुर जाता है तो वह शीशमहल के अलावा जयपुर सिटी पैलेस भी जरूर जाता है, जिसे 1729 में सवाई जयसिंग द्वितीय ने बनवाया था। जिसमें राजपूत, मुगल और यूरोपियन वास्तुकला शामिल की गई थी। अब महल का अधिकांश हिस्सा म्यूजियम बना दिया गया है , जिसे देखने के लिए शुल्क लगता है। वर्तमान में यहां पर राज परिवार की वंशज दिया कुमारी अपने परिवार के साथ रहती हैं। वह राजस्थान सरकार में फाइनेंस मिनिस्टर हैं।

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