सार
राजस्थान के देवली-उनियारा उपचुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा ने एसडीएम को थप्पड़ मारकर फिर विवाद खड़ा किया है। 'छोटा किरोड़ी' के नाम से मशहूर मीणा का राजनीतिक सफर बगावत और संघर्षों से भरा रहा है।
टोंक. राजस्थान के देवली-उनियारा विधानसभा उपचुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा का नाम पिछले दिनों चर्चा का विषय बना। एसडीएम अमित चौधरी को थप्पड़ मारने के बाद नरेश मीणा को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। इस विवादास्पद घटना के बाद नरेश मीणा के राजनीतिक करियर को लेकर फिर से सवाल उठने लगे हैं, क्योंकि उनका नाम हमेशा बगावत और राजनीतिक विद्रोह से जुड़ा रहा है।
संघर्षों और बगावतों से भरा है नरेश मीणा का राजनीतिक सफर
नरेश मीणा का राजनीतिक सफर हमेशा संघर्षों और बगावतों से भरा रहा है। वे कभी कांग्रेस के अहम नेता माने जाते थे और डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के करीबी सहयोगी भी थे। हालांकि, सियासत में नरेश मीणा ने अपनी अलग राह चुनी। 2020 के विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो उन्होंने बगावत की और निर्दलीय चुनाव लड़ा। उन्होंने छबड़ा विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरकर लगभग 44 हजार वोट हासिल किए, जिससे कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ। यह परिणाम बीजेपी के पक्ष में गया, जिन्होंने करीब 5 हजार वोटों से जीत हासिल की थी।
'छोटा किरोड़ी' के नाम से है राजस्थान में पहचान
नरेश मीणा की पहचान एक संघर्षशील नेता के रूप में हुई, जो पार्टी में रहते हुए भी अपनी स्वतंत्र सोच और कार्यशैली के लिए जाना जाता है। 2017 में मीणा समाज की रैली में उन्होंने अपनी श्रद्धा और समर्थन के रूप में 'छोटा किरोड़ी' के नाम से अपनी पहचान बनाई। तब उन्होंने किरोड़ी लाल मीणा के खून से तिलक किया था, जो उनके राजनीतिक रुझान को स्पष्ट करता है।
एक साल पहले भी गिरफ्तार हो चुके हैं नरेश मीणा
इसके अलावा, 2023 में नरेश मीणा को एक बार फिर से पुलिस ने गिरफ्तार किया था, जब बारां में कांग्रेस नेता दिनेश मीणा की हत्या के बाद उग्र प्रदर्शन हुआ। इस घटना में उन्होंने अपने समर्थकों के साथ कलेक्ट्रेट घेर लिया और पुलिस से अपनी रिहाई की मांग की थी।
राजस्थान राजनीति में एक अलग स्थान बनाया
नरेश मीणा का राजनीतिक सफर हमेशा विवादों से घिरा रहा है, और उनके थप्पड़ कांड ने एक बार फिर उनकी छवि को चर्चा में ला दिया है। हालांकि, उनके समर्थक उन्हें 'छोटा किरोड़ी' कहकर सम्मानित करते हैं, लेकिन उनकी लगातार बगावती नीतियों और कार्यों ने उन्हें राजस्थान राजनीति में एक अलग स्थान दिलाया है।
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