Furkan Voter ID Controversy: यूपी चुनाव 2022 में वोटर लिस्ट से नाम काटे जाने का मामला फिर सुर्खियों में है। समाजवादी पार्टी ने आरोप लगाया कि हजारों यादव और मुस्लिम वोटर सूची से गायब कर दिए गए, जिससे चुनाव नतीजे प्रभावित हुए।
Akhilesh Yadav Voter List Issue: उत्तर प्रदेश की राजनीति इन दिनों फिर गरमा गई है। वजह है 2022 विधानसभा चुनावों में मतदाता सूची से नाम काटे जाने का विवाद। समाजवादी पार्टी (SP) ने एक बार फिर चुनाव आयोग (Election Commission) पर गंभीर आरोप लगाए हैं। पार्टी का कहना है कि हजारों सपोर्टर्स को वोट देने के अधिकार से वंचित किया गया, जिससे चुनावी नतीजों पर सीधा असर पड़ा।
विवाद की शुरुआत कैसे हुई?
हाल ही में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर दावा किया कि उन्होंने 2022 के विधानसभा चुनावों में मतदाता सूची की गड़बड़ियों की 18,000 शिकायतें शपथपत्र के साथ दी थीं। उनका आरोप है कि इसके बावजूद चुनाव आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की।
इस दावे के जवाब में जौनपुर, कासगंज और बाराबंकी के जिलाधिकारियों (DMs) ने अखिलेश यादव के आरोपों को नकारते हुए कहा कि जांच में सपा की कई शिकायतें गलत पाई गईं।
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बाराबंकी में सपा की प्रेस कॉन्फ्रेंस
चुनाव आयोग के इस रुख के विरोध में सपा ने बाराबंकी में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। कुर्सी विधानसभा के पूर्व प्रत्याशी और पूर्व कैबिनेट मंत्री राकेश वर्मा ने कहा: "हमने कई बार शिकायत की कि हजारों यादव और मुस्लिम मतदाताओं के नाम सूची से गायब कर दिए गए। यहां तक कि कुछ लोगों को मृत दिखाकर उनका नाम ही काट दिया गया।"
राकेश वर्मा का दावा है कि उनकी विधानसभा में 10 हजार से ज्यादा ऐसे मामले सामने आए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर चुनाव आयोग सही है तो उसे शपथपत्र के साथ जवाब देना चाहिए।
मतदाता सूची से नाम काटे जाने के उदाहरण
पूर्व एमएलसी राजेश यादव ने उदाहरण देते हुए बताया:
- नसरीन बानो का वोटर आईडी 2016 में बना था, लेकिन 2022 चुनाव में उन्हें मृत दिखाकर नाम हटा दिया गया। बाद में जून 2022 में उन्हें नया आईडी जारी किया गया।
- फुरकान के साथ भी ऐसा ही हुआ। चुनाव से पहले उनका नाम भी मृतक दिखाकर डिलीट कर दिया गया।
सपा नेताओं का आरोप है कि यह सब योजनाबद्ध तरीके से किया गया ताकि सपा के वोट बैंक को कमजोर किया जा सके।
चुनाव आयोग पर विपक्ष के आरोप
सपा जिलाध्यक्ष हाफिज अयाज ने कहा:"हमारे सपोर्टर्स के नाम काटे गए, जिससे सरकार बनाने का मौका खो गया। अगर राष्ट्रीय नेतृत्व ने आदेश दिया तो हम आंदोलन करेंगे।"
वहीं, अखिलेश यादव ने फिर से सवाल उठाते हुए लिखा कि यदि नाम काटना गलत नहीं था तो इतने साल बाद सफाई देने की क्या जरूरत पड़ी?उन्होंने मांग की कि जिन ‘मृतक प्रमाणपत्रों’ के आधार पर नाम हटाए गए, वे सार्वजनिक किए जाएं।
सपा का दावा है कि वह इस मामले को लेकर संघर्ष जारी रखेगी। वहीं, चुनाव आयोग और जिला प्रशासन अपनी जांच रिपोर्ट को सही ठहराने पर अड़ा है। सवाल यह है कि क्या मतदाता सूची से नाम काटने की यह गुत्थी कभी पूरी तरह सुलझ पाएगी?
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