Ganga Water Dr Ajay Kumar Sonkar Research: पितृपक्ष में गंगा स्नान के महत्व पर वैज्ञानिक अध्ययन। डॉ. अजय कुमार सोनकर ने सिद्ध किया कि करोड़ों श्रद्धालुओं के स्नान के बाद भी गंगा जल शुद्ध और अल्कलाइन वाटर जैसा सुरक्षित है।
पितृपक्ष का समय हिंदू धर्म में आस्था और श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है। इस अवधि में लाखों लोग अपने पितरों की शांति और मोक्ष के लिए गंगा स्नान करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि करोड़ों लोगों के स्नान के बावजूद गंगा जल दूषित क्यों नहीं होता? इसका उत्तर महाकुंभ 2025 में हुए एक रिसर्च में सामने आया था।
57 करोड़ श्रद्धालुओं के स्नान के बाद भी शुद्ध रहा गंगा जल
महाकुंभ के दौरान 57 करोड़ से अधिक श्रद्धालु गंगा में आस्था की डुबकी लगा चुके हैं। इसके बावजूद गंगा जल की शुद्धता पर कोई असर नहीं पड़ा। यह दावा देश के वरिष्ठ वैज्ञानिक और पद्मश्री सम्मानित डॉ. अजय कुमार सोनकर ने किया था, उनका कहना है कि गंगा जल की शुद्धता किसी चमत्कार से कम नहीं है और यह अल्कलाइन वाटर जितना शुद्ध पाया गया है।
प्रयोगशाला में हुआ बड़ा खुलासा
डॉ. सोनकर ने प्रयागराज के संगम, अरैल और अन्य प्रमुख घाटों से गंगा जल के नमूने लिए और तीन महीने तक इसका परीक्षण किया। परीक्षण में सामने आया कि:
- जल में बैक्टीरियल ग्रोथ शून्य रही।
- पीएच स्तर 8.4 से 8.6 के बीच रहा, जो सामान्य जल से भी बेहतर है।
- गंगा जल में 1100 प्रकार के बैक्टीरियोफेज पाए गए, जो हानिकारक बैक्टीरिया को स्वतः ही नष्ट कर देते हैं।
कौन हैं डॉ. अजय कुमार सोनकर?
डॉ. अजय कुमार सोनकर प्रयागराज के एक प्रख्यात स्वतंत्र वैज्ञानिक हैं, जिन्हें पद्मश्री सम्मान प्राप्त हो चुका है। वे मोती (पर्ल) कल्चर और मोलस्क-आधारित रिसर्च के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचाने जाते हैं। डॉ. सोनकर ने ताजे पानी में ब्लैक पर्ल उगाने की तकनीक विकसित की है, जिसे विज्ञान जगत में बड़ी उपलब्धि माना गया। उनकी प्रयोगशाला में टिशू कल्चर, सेल बायोलॉजी और मोलस्क पर कई महत्वपूर्ण अध्ययन किए गए हैं। गंगा जल की शुद्धता पर उनका हालिया शोध इस बात का प्रमाण है कि वे केवल आस्था के आधार पर नहीं, बल्कि वैज्ञानिक परीक्षणों से अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करते हैं।
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जानिए क्यों खास है गंगा जल?
बैक्टीरियोफेज की मौजूदगी ही गंगा जल को स्वाभाविक रूप से शुद्ध बनाती है। यही कारण है कि करोड़ों स्नान करने वालों के बावजूद इसमें संक्रमण नहीं फैलता। शोध में यह भी सामने आया कि गंगा जल में स्नान से त्वचा संबंधी रोग नहीं होते और न ही किसी तरह की बीमारी फैलती है। कुछ संगठनों द्वारा गंगा जल को प्रदूषित बताया गया था, लेकिन इस वैज्ञानिक परीक्षण ने सभी भ्रांतियों को खारिज कर दिया। डॉ. सोनकर का कहना है कि गंगा की यह शुद्धिकरण क्षमता वास्तव में वैज्ञानिक दृष्टि से भी अद्भुत है।
पितृपक्ष और गंगा स्नान का वैज्ञानिक महत्व
पितृपक्ष में गंगा स्नान करने की परंपरा केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी नहीं है, बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक आधार भी है। शुद्ध और सुरक्षित गंगा जल में स्नान करने से शरीर शुद्ध होता है और मन को शांति मिलती है। यही कारण है कि पितरों की मुक्ति और आशीर्वाद के लिए गंगा स्नान का महत्व और भी बढ़ जाता है।
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