PM Awas Yojana Scam Update: प्रयागराज में 9000 लोगों ने फर्जीवाड़ा कर 108 करोड़ हड़प लिए! पेंशन योजना में भी मृतकों और शादीशुदा महिलाओं को मिली रकम। क्या भ्रष्ट सिस्टम गरीबों का हक मार रहा है या कोई और गहरी साजिश है?

PM Awas Yojana Fraud Prayagraj: प्रधानमंत्री आवास योजना (PM Awas Yojana) मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है, जिसका मकसद गरीबों और बेघर परिवारों को छत देना है। लेकिन प्रयागराज (Prayagraj) से आया खुलासा इस योजना की पारदर्शिता और निगरानी पर सवाल खड़े कर रहा है। करीब 9000 लोगों ने फर्जीवाड़ा कर 1.20 लाख रुपये की पहली किश्त लेकर कुल 108 करोड़ रुपये हड़प लिए।

क्या गरीबों का हक मारा गया?

जांच में सामने आया कि जिन लाभार्थियों को पैसा मिला, उनमें से कई पहले से ही पक्के मकानों में रहते थे। कुछ तो दो मंजिला मकान के मालिक निकले। शंकरगढ़ ब्लॉक में 3,127 लोगों ने पहली किश्त मिलने के बाद एक भी ईंट तक नहीं रखी। सवाल ये उठता है कि जब घर पहले से मौजूद थे, तो फर्जी दस्तावेजों को पास करने वाले अधिकारियों की भूमिका क्या थी?

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पेंशन योजनाओं में भी गड़बड़ी क्यों?

  • सिर्फ प्रधानमंत्री आवास योजना ही नहीं, बल्कि पेंशन योजनाओं में भी भारी गड़बड़ी सामने आई है।
  • विधवा पेंशन योजना में 100 से अधिक महिलाएं जिनकी या तो शादी हो चुकी थी या जिनका निधन हो गया था, फिर भी उन्हें 12 लाख रुपये से अधिक की राशि मिलती रही।
  • वृद्धावस्था पेंशन योजना में 2,351 मृतक लाभार्थियों के नाम पर पेंशन जारी रही।
  • कुल मिलाकर करीब 40 लाख रुपये का फ्रॉड केवल पेंशन योजनाओं में हुआ।

क्या सिस्टम में गंभीर खामियां छिपी हैं?

जिला प्रशासन ने साफ किया कि मौजूदा नियमों में गलत तरीके से दी गई राशि वापस लेने का कोई ठोस प्रावधान नहीं है। यही वजह है कि कार्रवाई में कठिनाई आ रही है। इससे यह सवाल उठता है कि-

  • क्या सरकारी योजनाओं के सत्यापन सिस्टम में बड़ी खामियां हैं?
  • क्या अधिकारी जानबूझकर इस फर्जीवाड़े को नजरअंदाज कर रहे थे?
  • या फिर यह किसी बड़े नेटवर्क की संगठित साजिश है?

क्या होगी कार्रवाई?

मुख्य विकास अधिकारी हर्षिका सिंह ने सभी मामलों की जांच के आदेश दिए हैं और दोषियों से राशि रिकवर करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। जिन अधिकारियों ने फर्जी आवेदन पास किए, उनकी भी जवाबदेही तय की जा रही है। PM Awas Yojana Scam और Pension Fraud ने एक बार फिर ये साबित कर दिया है कि अगर निगरानी कमजोर हो, तो कल्याणकारी योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं। गरीबों के हक का पैसा फर्जी लाभार्थियों तक कैसे पहुंचा, यह सवाल अब भी गहराई से जांच की मांग करता है।

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