Prithvinath Temple History: उत्तर प्रदेश के गोंडा स्थित पृथ्वीनाथ मंदिर को एशिया का सबसे ऊंचा शिवलिंग कहा जाता है। पौराणिक मान्यता है कि इसकी स्थापना महाबली भीम ने की थी और यह महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। श्रद्धा का गहरा केंद्र है यह मंदिर।
Prithvinath Mandir Gonda: उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले से एक ऐसा हादसा सामने आया, जिसने पूरे इलाके को शोक में डुबो दिया। 11 श्रद्धालु, जो एक बोलेरो कार में सवार होकर पृथ्वीनाथ मंदिर में दर्शन के लिए निकले थे, मंदिर तक पहुंचने से पहले ही नहर में डूब गए। यह दुर्घटना इटिया थोक थाना क्षेत्र में हुई, जहां कार अनियंत्रित होकर नहर में जा गिरी। हादसे में 11 लोगों की मौत हो गई, जबकि कुछ लोग गंभीर रूप से घायल हुए। यह मंदिर, जहां श्रद्धालु दर्शन के लिए जा रहे थे, केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि सदियों पुराना एक ऐतिहासिक चिन्ह है, जो महाभारत काल से जुड़ा हुआ माना जाता है।
क्यों खास है पृथ्वीनाथ मंदिर?
गोंडा जिले के खरगूपुर क्षेत्र में स्थित पृथ्वीनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यहां स्थापित शिवलिंग को एशिया का सबसे ऊंचा शिवलिंग माना जाता है, जिसकी ऊंचाई करीब 54 फीट है। यह शिवलिंग न केवल अपनी भव्यता के लिए जाना जाता है, बल्कि इसके नीचे का 64 फीट हिस्सा भी पौराणिक कथाओं में दर्ज है। यह सात खंडों में विभाजित है और इसकी स्थापना के पीछे एक रोचक कथा जुड़ी हुई है।
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क्या है पांडवों से इसका संबंध?
धार्मिक मान्यता है कि महाबली भीम ने अज्ञातवास के दौरान इस शिवलिंग की स्थापना की थी। महाभारत के वनपर्व में वर्णित है कि पांडव अपनी माता कुंती के साथ कौशल राज्य (आज का गोंडा क्षेत्र) पहुंचे थे। यहां एक राक्षस बकासुर का आतंक फैला हुआ था, जिसे भीम ने पराजित किया। लेकिन चूंकि बकासुर एक ब्राह्मण राक्षस था, इसलिए उसका वध करने से भीम पर ब्रह्महत्या का पाप लग गया। पाप से मुक्ति के लिए श्रीकृष्ण के निर्देश पर उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की और यहीं एक विशाल शिवलिंग की स्थापना की।
कैसे मिला 'पृथ्वीनाथ' नाम?
समय के साथ यह शिवलिंग जमीन में दबता चला गया। लेकिन 19वीं सदी में गोंडा नरेश की सेना के एक सेवानिवृत्त सैनिक पृथ्वी सिंह ने जब इसी जगह पर खुदाई शुरू की, तो जमीन से खून जैसा द्रव निकलने लगा। घबराए मजदूरों ने काम बंद कर दिया, लेकिन उसी रात पृथ्वी सिंह को स्वप्न में भगवान शिव ने दर्शन दिए और जमीन में दबे शिवलिंग का रहस्य बताया। अगली सुबह की गई खुदाई में एक विशाल शिवलिंग मिला और फिर मंदिर का निर्माण हुआ। तब से यह मंदिर "पृथ्वीनाथ मंदिर" के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
क्या कहता है इतिहास और पुरातत्व?
माना जाता है कि यह शिवलिंग 5000 से 6500 वर्ष पुराना है और काले कसौटी पत्थर से निर्मित है। पुरातत्व विभाग की जांचों में भी इस शिवलिंग को महाभारत काल का बताया गया है। इतना ही नहीं, मुगलकालीन दस्तावेजों में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है, जहां एक सेनापति ने इसका जीर्णोद्धार कराया था।
श्रद्धालु क्यों मानते हैं इस स्थान को खास?
पृथ्वीनाथ मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था और आशीर्वाद का प्रतीक है। यहां सावन के महीने में लाखों श्रद्धालु भगवान शिव का जलाभिषेक करने आते हैं। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से की गई प्रार्थना जरूर फलदायी होती है। मंदिर के पुजारी के अनुसार, हर साल शिवरात्रि के अवसर पर यहां विशाल मेला भी लगता है, जो पूरे क्षेत्र की संस्कृति और परंपरा का हिस्सा बन चुका है।
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Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं, लोक कथाओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है। इसकी पुष्टि Asianet Hindi नहीं करता है। पाठकों से अनुरोध है कि इसे केवल सूचना के रूप में लें।
