सार

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में स्थित है एक और ताजमहल, जिसे एक पोस्ट मास्टर ने अपनी पत्नी की याद में बनवाया था। अपनी पूरी जिंदगी की कमाई खर्च करके बनाया गया यह मिनी ताजमहल, प्रेम और समर्पण की अनोखी मिसाल है।

ताजमहल का नाम सुनते ही सबसे पहले ज़हन में आता है दुनिया के सात अजूबों में से एक आगरा का प्रेम स्मारक। लेकिन क्या आपको पता है उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में भी एक ताजमहल है?  बुलंदशहर के डिबाई कस्बे के पास कसैर कला में स्थित है ये अनोखी इमारत। असली संगमरमर के अजूबे की तरह, यह भी एक प्रियजन की याद में बनाया गया था। इसे 'गरीबों का ताजमहल' भी कहा जाता है।

एक पोस्ट मास्टर रहे फैजुल हसन कादरी ने अपनी पत्नी बेगम ताज मुल्ली बीबी की याद में इस मिनी ताजमहल का निर्माण करवाया था। अपनी पूरी जिंदगी की कमाई खर्च करके इस पोस्ट मास्टर ने अपनी दिवंगत पत्नी की प्रेम निशानी के तौर पर इस खूबसूरत स्मारक का निर्माण करवाया।  ताज मुल्ली बीबी बेगम कादरी साहब की बेगम का नाम था। उनकी मृत्यु के बाद कादरी साहब अकेले पड़ गए थे और अपनी पत्नी की याद को हमेशा के लिए ज़िंदा रखने के लिए उन्होंने एक मिनी ताजमहल बनवाने का फैसला किया। ताजमहल से प्रेरित होकर बनाई गई ये इमारत भी प्रेम का प्रतीक है. 

 

2012 में कादरी साहब ने अपने घर के पास ही खेत में इस प्रेम स्मारक का निर्माण कार्य शुरू करवाया। दो साल की कड़ी मेहनत के बाद इमारत का काम पूरा हुआ। 2014 तक उन्होंने इस इमारत पर 23 लाख रुपए खर्च कर दिए थे। इमारत लगभग तैयार हो चुकी थी लेकिन अभी भी संगमरमर का काम बाकी था। इसे पूरा करने के लिए 10 लाख रुपए और चाहिए थे। लेकिन नौकरी से रिटायर हो चुके कादरी साहब के पास उस समय आय का जरिया सिर्फ उनकी पेंशन थी। अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी पेंशन से पैसे जोड़ने शुरू कर दिए और मरते दम तक 74,000 रुपए जमा कर पाए।  

 

मिनी ताजमहल की खबरें मीडिया में आने के बाद, उस समय के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कादरी साहब को लखनऊ बुलाया और निर्माण कार्य पूरा करने और संगमरमर का काम करवाने के लिए आर्थिक मदद की पेशकश की।  लेकिन उन्होंने विनम्रतापूर्वक यह प्रस्ताव ठुकरा दिया और इसके बजाय समाजवादी पार्टी नेता से लड़कियों के लिए एक इंटर कॉलेज बनवाने का अनुरोध किया। उनकी मांग पर सरकार ने कॉलेज शुरू करवाया। मुगल बादशाह शाहजहां और उनकी प्यारी पत्नी मुमताज की तरह ही कादरी साहब को भी मृत्यु के बाद अपनी पत्नी के बगल में ही दफनाया गया। यह जगह आज एक प्रमुख पर्यटन स्थल है।