सार

CM योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जब दुनिया सभ्यता और संस्कृति से अनजान थी, तब भारत में लोकतांत्रिक मूल्य चरम पर थे। उन्होंने कहा कि भारत की प्राचीन व्यवस्थाओं में जनता की आवाज और हित सर्वोपरि रहे हैं, जिसका प्रमाण रामायण और महाभारत काल से मिलता है।

गोरखपुर, 15 सितंबर। मुख्यमंत्री एवं गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने कहा कि दुनिया में जब सभ्यता, संस्कृति और मानवीय मूल्यों के प्रति आग्रह नहीं था तब भारत मे सभ्यता, संस्कृति और मानवीय जीवन मूल्य चरम पर थे। भारतीय सभ्यता और संस्कृति प्राचीन काल से लेकर अर्वाचीन काल तक लोकतांत्रिक मूल्यों से परिपूर्ण रही है। इसका उद्देश्य किसी का हरण करना या किसी पर जबरन शासन करना नहीं था बल्कि इसकी भावना ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ की रही है। इसका नया स्वरूप आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘सबका साथ सबका विकास’ के संकल्प में दिखता है। हमारी ऋषि परंपरा जियो और जीने दो की रही है क्योंकि यही सच्चा लोकतंत्र है और इस मूल्यपरक लोकतंत्र को किसी और ने नहीं बल्कि भारत ने दिया है।

सीएम योगी रविवार को युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में समसामयिक विषयों के सम्मेलनों की श्रृंखला के पहले दिन ‘लोकतंत्र की जननी है भारत’ विषयक सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे थे। सम्मेलन के मुख्य अतिथि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह का अभिनंदन करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि लोकतंत्र को लेकर वैदिक कालखंड से लेकर रामायणकालीन और महाभारतकालीन अनेक उद्धरण देखने को मिलते हैं। भारत के लोकतंत्र में प्राचीन समय से लेकर आज तक जनता की आवाज और जनता के हित को ही सर्वोपरि रखा गया है। भारतीय सभ्यता में हमेशा ही यह कह गया है कि प्रजा का सुख ही राजा का दायित्व है। रामायण काल में भगवान श्रीराम ने भी अक्षरशः जनता की आवाज को महत्व दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने भी खुद को कभी राजा नहीं समझा। उनके समय में वरिष्ठ व्यक्ति के नेतृत्व में गणपरिषद शासन का कार्य देखती थी। द्वारिका में जब अंतर्द्वंद्व प्रारंभ हुआ तब इस परिषद के सदस्य आपस में लड़कर मर-मिट गए। उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने परिषद के सदस्यों की दुर्गति पर कहा था कि राज्य के नियम प्रत्येक नागरिक पर समान रूप से लागू होते हैं।

लोकतंत्र में जनता का हित ही सर्वोच्च

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में कुछ लोगों पर गुलामी की मानसिकता आज भी हावी है। जबकि भारत में लोकतंत्र की जड़ें प्राचीन समय से ही गहरी रही हैं। उन्होंने बताया कि भारत तब गुलाम हुआ जब लोकतंत्र की विरासत को संजोने में चूक हुई। उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत में निरंकुश राजा को सत्ताच्युत करने का अधिकार जनता के प्रतिनिधित्व वाले परिषद के पास होता था। लोकतंत्र में यह स्पष्ट है कि जनता का हित ही सर्वोच्च है। प्राचीन काल में देखें तो वैशाली गणराज्य इसका एक उदाहरण है जहां पूरी व्यवस्था जनता के हितों के लिए समर्पित थी।

संविधान को देंगे सर्वोच्च सम्मान तो और मजबूत होगा लोकतंत्र

मुख्यमंत्री ने कहा कि आज सभी भारतीयों को अपने लोकतंत्र पर और लोकतांत्रिक मूल्यों पर चलकर तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था पर गौरव की अनुभूति करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारा लोकतंत्र तभी तक सुरक्षित है जब तक हमारा संविधान सुरक्षित है। संविधान को पवित्र भावना से, जाति, मत, मजहब, क्षेत्र से ऊपर उठकर इसे सुरक्षित-संरक्षित रखने का दायित्व सभी लोगों को उठाना होगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि हम संविधान को सर्वोच्च सम्मान देते हुए आगे बढ़ेंगे तो हमारा लोकतंत्र और मजबूत-पुष्ट होगा।

भारतीय मूल्यों और संस्कारों से ही चल रहा लोकतंत्र : हरिवंश नारायण

‘लोकतंत्र की जननी है भारत’ विषयक सम्मेलन के मुख्य अतिथि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने कहा कि लोकतंत्र के संस्कार पांच हजार वर्ष पुराने भारतीय मूल्यों से गढ़े गए हैं। सही मायने में भारतीय मूल्यों और संस्कारों से ही लोकतंत्र चल रहा है।

श्री हरिवंश ने कहा कि खुलकर अपनी बात रखना ही लोकतंत्र का यथार्थ है और यह मूल्य भारत की हजारों वर्षों की परंपरा में निहित रहे। भारतीय लोकतंत्र में जनता को हर प्रकार की आजादी के साथ खामी को भी ठीक करने की गुंजाइश है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी मूल्यों से प्रभावित लोगों ने ही भारतीय लोकतंत्र को आयातित समझने की भूल की है। इस भूल का कारण यह रहा कि भारतीय लोकतंत्र को यूनान को नजर से देखने की आदत डाली गई। उन्होंने कहा कि भारत को आजादी मिलने के बाद कई विदेशी विद्वानों ने कहा था कि भारत में लोकतंत्र टिकेगा नहीं और आज उसका जवाब यह है कि अगले साल हम संविधान लागू होने का अमृत वर्ष मनाने जा रहे हैं। श्री हरिवंश ने कहा कि आज भारत अपने को लोकतंत्र की जननी के वास्तविक नजरिये से दुनिया के सामने पेश कर रहा है। पहले इस विषय पर चर्चा नहीं होती थी। आज भारत ने जी-20 सम्मेलन का माध्यम से इस पर बात की। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी भारतीय लोकतंत्र को लेकर महत्वपूर्ण विमर्श को ऐसे आयोजनों से आगे बढ़ा रहे हैं।

भारत में रही है त्याग और नैतिकता की परंपरा

राज्यसभा के उपसभापति ने कहा कि भारत में वेद, पुराण, उपनिषद की और ऋषियों की परंपरा के मूल्य थे। हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में धर्म मार्गदर्शक की भूमिका में था इसलिए हमारे यहां आतताई शासकों का वर्णन नहीं मिलता है। राजा, देवता, जनता सभी धर्म से बंधे थे। भारत मे त्याग और नैतिकता की परंपरा रही है। इसीलिए राजा सर्वशक्तिमान होकर भी स्वेच्छाचारी नहीं था। चक्रवर्ती सम्राट को भी धर्मदंड से चेतावनी दी जाती थी।

अब्राहम लिंकन के 2700 पूर्व प्रजातंत्र का उल्लेख

श्री हरिवंश ने कहा कि अब्राहम लिंकन द्वारा लोकतंत्र की परिभाषा देने से 2700 वर्ष पूर्व कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कहा गया है कि प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है। अशोक के धौली शिलालेख में लिखा है, सारी प्रजा मेरी संतान है। यह सब लोकतंत्र के मूल्य ही तो हैं। अथर्ववेद में भी लोकतांत्रिक प्रणाली का उल्लेख मिलता है। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश इतिहासकार थॉमसन ने कहा था कि लंदन के हाउस ऑफ कॉमंस के नियम भारत की पुरानी सभाओं से लिए गए लगते हैं। जार्ज बर्नाड शॉ ने भी आश्चर्य जताते हुए कहा था कि ग्रीक और रोम की सभ्यता मिट गई लेकिन भारत की सभ्यता, संस्कृति कैसे बची रही, यह रहस्यमय है। वास्तव में इसका सीक्रेट यह है कि भारत की सभ्यता और संस्कृति वेदों, पुराणों की है, ऋषियों की है। भारत की सभ्यता, संस्कृति पुराने मूल्यों से बची रही।

प्राचीनकाल के गांवों में थी आत्मशासन की व्यवस्था

हरिवंश नारायण सिंह ने कहा कि भारत को लोकतंत्र की जननी इसलिए कहा जाता है कि यहां प्राचीनकाल से गांव स्तर तक लोकतंत्र सम्मत आत्मशासन की व्यवस्था थी। जनजातीय क्षेत्रों में भी लोकतांत्रिक मूल्यों वाली स्थानीय परिषदें थीं। भारत के भक्ति आंदोलन ने भी लोकतंत्र की अलख जगाकर इसे सम्पुष्ट किया।

अब जाकर बना 100 साल का रोडमैप

राज्यसभा के उपसभापति ने कहा कि भारत में आजादी के बाद अब जाकर देश के अगले सौ साल का रोडमैप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बना है। उन्होंने देश को 2047 तक विकसित भारत बनाने के लिए एक लाख युवाओं को राजनीति में आने का आह्वान किया है। जबकि चीन ने 1947-48 में ही अपने लिए सौ साल की कार्ययोजना बना ली थी। सत्तर के दशक में चूक हुई और चीन हमसे पांच गुना आगे बढ़ गया।

रामराज की संकल्पना को साकार कर रहे सीएम योगी

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को रामराज की संकल्पना साकार करने वाला बताते हुए श्री हरिवंश ने कहा कि रामराज की स्पिरिट योगी जी में दिखती है। समान रूप से सबको न्याय, सुरक्षा के पुरातन भारतीय मूल्य योगी जी की कार्यपद्धति में नजर आते हैं। राज्यसभा के उपसभापति ने ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ और ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की पुण्य स्मृति को नमन करते हुए कहा कि अतीत के महापुरुषों को याद करना भविष्य के लिए प्रेरणा देता है। राष्ट्रीय, सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना के पुनर्जागरण में इन दोनों गोरक्षपीठाधीश्वरों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ का जीवन भारतीय मूल्यों के प्रति समर्पित रहा।

भारत में लोकतांत्रिक शासन की परंपरा अति प्राचीन : प्रो. सदानंद

सम्मेलन में विषय प्रवर्तन करते हुए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. सदानन्द गुप्त ने कहा कि भारत में लोकतांत्रिक शासन की परंपरा अति प्राचीन है। भारत में लोकतंत्र का सिद्धांत वेदों से निकला है। लोकतंत्र का वर्णन ऋग्वेद और अथर्ववेद में भी मिलता है। ऋग्वेद में 40 बार और अथर्ववेद में 9 बार गणतंत्र शब्द का उल्लेख है। विश्व मे सबसे पहले कहीं लोकतंत्र के भाव का प्रादुर्भाव हुआ तो वह भारत ही है।

सम्मेलन को सवाई, आगरा के ब्रह्मचारी दास लाल और सुग्रीव क़िलाधीश अयोध्या के स्वामी विश्वेष प्रपन्नाचार्य ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ, अयोध्या से आए महंत सुरेश दास, कटक से आए महंत शिवनाथ, काशी से आए महामंडलेश्वर संतोष दास उर्फ सतुआ बाबा, मिथिलेशनाथ, राममिलन दास, कर्नाटक से आए भयंकरनाथ, अहमदाबाद से आए कमलनाथ, रविंद्रदास आदि भी प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।