सार

उत्तर प्रदेश में पराली जलाने के मामलों में भारी कमी आई है। योगी सरकार की नीतियों से पराली किसानों के लिए आय का जरिया बन गई है, जिससे प्रदूषण कम हुआ है और किसानों की आमदनी बढ़ी है।

उत्तर प्रदेश | पराली जलाने की घटनाओं में रिकॉर्ड कमी दर्ज की गई है। योगी आदित्यनाथ सरकार की प्रभावी नीतियों और जागरूकता अभियानों ने किसानों के लिए पराली को बोझ से आय के स्रोत में बदल दिया है। वर्ष 2017 में जहां प्रदेश में पराली जलाने के 8,784 मामले सामने आए थे, वहीं 2023 में यह संख्या घटकर मात्र 3,996 रह गई। सात वर्षों में 4,788 मामलों की कमी से न केवल प्रदूषण पर नियंत्रण हुआ है, बल्कि किसानों की आय में भी बढ़ोतरी हुई है।

पराली का शत-प्रतिशत प्रबंधन और नए अवसर

उत्तर प्रदेश में हर साल लगभग 2.096 करोड़ मीट्रिक टन पराली का उत्पादन होता है। योगी सरकार ने इसके निस्तारण के लिए अभिनव कदम उठाए हैं। मौजूदा समय में:

  • 34.44 लाख मीट्रिक टन पराली चारे के रूप में उपयोग हो रही है।
  • 16.78 लाख मीट्रिक टन पराली अन्य घरेलू और औद्योगिक उपयोग में लाई जा रही है।
  • 1.58 करोड़ मीट्रिक टन पराली इन-सीटू और एक्स-सीटू प्रबंधन के जरिए निस्तारित की जा रही है।

किसानों को मिला नए बाजारों तक पहुंच का अवसर

मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार, पराली के औद्योगिक और जैविक उपयोग को बढ़ावा दिया गया है। किसानों को पराली बेचने के नए बाजारों से जोड़ा गया, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर सृजित हुए हैं। जैविक खेती और लीफ कम पोस्ट वेस्ट (एलसीवी) तकनीक ने मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मदद की है।

जागरूकता अभियानों का असर

फतेहपुर, कुशीनगर और महाराजगंज जैसे जिलों में पराली जलाने की घटनाओं में न्यूनतम मामले सामने आए। यह सरकार द्वारा चलाए गए जागरूकता अभियानों और बेहतर फसल अवशेष प्रबंधन की सफलता को दर्शाता है।

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