PDS comparison UP-BIHAR : उत्तर प्रदेश और बिहार की राशन वितरण व्यवस्था की तुलना, शिकायतों, लीकेज, डिजिटल पारदर्शिता और सरकारी रैंकिंग के आधार पर – जानिए कौन राज्य कितना प्रभावी है।
UP vs Bihar ration system: भारत की सबसे बड़ी जन-कल्याण योजनाओं में से एक है सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System - PDS)। इस व्यवस्था के तहत देश के करोड़ों गरीब परिवारों को सस्ता अनाज, चीनी, मिट्टी का तेल और अन्य जरूरी वस्तुएं दी जाती हैं।
लेकिन सवाल यह है कि क्या हर राज्य इसे समान रूप से लागू करता है? क्या हर लाभार्थी को समय पर और सही मात्रा में राशन मिलता है? हमारी विशेष सीरीज़ “कहां ठीक, कहां फेल?” में आज बात करेंगे उत्तर प्रदेश और बिहार की, देश के दो बड़े राज्यों की जिनकी आबादी करोड़ों में है और जहां PDS सिस्टम लोगों की रसोई का आधार है।
क्या कहते हैं शिकायतों के आंकड़े?
LiveMint की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019 तक:
- उत्तर प्रदेश में 328 शिकायतें दर्ज की गईं थी जो राशन व्यवस्था से जुड़ी थीं।
- वहीं बिहार में ऐसी शिकायतों की संख्या 108 थी।
इन आंकड़ों से ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तर प्रदेश में इस सिस्टम को लेकर लोगों की नाराज़गी और अव्यवस्था ज़्यादा सामने आई थी। लेकिन एक बात और समझनी ज़रूरी है, शिकायतों की संख्या राज्य की जनसंख्या और डिजिटल जागरूकता पर भी निर्भर करती है। उत्तर प्रदेश में जनसंख्या ज़्यादा होने के कारण शिकायतें अधिक आना भी स्वाभाविक हो सकता है।
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टेक्नोलॉजी से आया सुधार? जानिए IndiaTV की रिपोर्ट क्या कहती है
आज के समय में पारदर्शिता और गड़बड़ी पर रोक लगाने का सबसे मजबूत तरीका है, डिजिटल सिस्टम। IndiaTV की एक रिपोर्ट में बताया गया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने राशन वितरण प्रणाली को आधार और बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन से जोड़ दिया है।
- 99% से ज्यादा राशन वितरण अब बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन से हो रहा है।
- 14.6 करोड़ लोगों को सीधे डिजिटल माध्यम से लाभ पहुंच रहा है।
यह एक बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है क्योंकि इससे फर्ज़ी राशन कार्ड, डुप्लिकेट लाभार्थी और बिचौलियों की भूमिका कम हो जाती है।हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स यह भी दावा करती है कि,बिहार में यह प्रक्रिया अभी भी आंशिक रूप से लागू है। कुछ जिलों में बायोमेट्रिक प्रणाली काम करती है, लेकिन पूरी तरह से प्रभावी नहीं मानी जा रही।
बिहार में कभी था 91% लीकेज – अब कितना घटा?
LukmaanIAS के अध्ययन के अनुसार, साल 2004-05 में बिहार की PDS व्यवस्था में 91% तक राशन लीकेज हो रहा था। मतलब जितना अनाज भेजा जाता था, उसका 90% से ज़्यादा ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुंचता था। लेकिन अच्छी बात ये है कि 2022-23 तक बिहार ने इस आंकड़े को घटाकर 26.5% तक ला दिया है। यानी व्यवस्था में सुधार तो हुआ है, लेकिन अब भी एक चौथाई राशन बीच में ही गायब हो जाता है।
NCAER ने क्या बताया? – कौन सा मॉडल बेहतर?
भारत में दो तरह की राशन वितरण प्रणाली चल रही हैं:
- NFSA आधारित मॉडल – जैसे कि बिहार में
- TPDS मॉडल – जैसे उत्तर प्रदेश में
NCAER (National Council of Applied Economic Research) की रिपोर्ट के अनुसार, NFSA मॉडल में औसतन 16.28% राशन लीकेज होता है। वहीं TPDS मॉडल में APL कार्ड धारकों में लीकेज – 35.3%, BPL कार्ड धारकों में – 32.9%, AAY (सबसे गरीब वर्ग) में – 5.1%, इस तुलना से ये समझ आता है कि NFSA मॉडल अपेक्षाकृत ज़्यादा प्रभावी है, लेकिन TPDS मॉडल में भी अगर निगरानी और टेक्नोलॉजी सही हो, तो असर दिखता है।
रैंकिंग क्या कहती है? – NFSA Performance Index में कौन टॉप पर?
2022 की एक केंद्र सरकार द्वारा जारी NFSA Performance Index में:
- उत्तर प्रदेश को 0.897 स्कोर मिला, जिससे वह दूसरे स्थान पर रहा।
- बिहार को 0.783 स्कोर मिला और वह सातवें स्थान पर रहा।
इस रैंकिंग को तय करने में जो बातें देखी जाती हैं:
- राशन की नियमित आपूर्ति
- पारदर्शी वितरण प्रणाली
- शिकायत निवारण की व्यवस्था
- डिजिटलीकरण की स्थिति
दोनों राज्यों ने क्या सीखा, और अब आगे क्या ज़रूरी है?
अब जब हम यूपी और बिहार की तुलना करते हैं, तो हमें ये स्पष्ट होता है:
| पक्ष | उत्तर प्रदेश | बिहार |
| शिकायतें (2019) | 328 | 108 |
| डिजिटल बायोमेट्रिक कवरेज | 99%+ | अधूरा |
| राशन लीकेज (2004-2023) | उपलब्ध डेटा सीमित | 91% → 26.5% |
| स्कीम मॉडल | TPDS | NFSA |
| NFSA स्कोर (2022) | 0.897 (2nd) | 0.783 (7th) |
उत्तर प्रदेश ने टेक्नोलॉजी को अपनाकर पारदर्शिता बढ़ाने में तेज़ी दिखाई है, वहीं बिहार ने लीकेज को नियंत्रित करने में लंबा सफर तय किया है। लेकिन अब भी दोनों राज्यों में कई ज़िलों में असमानता, वितरण में गड़बड़ी और शिकायतों की अनदेखी जैसी समस्याएं मौजूद हैं।
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