Uttarakhand Cloudburst: उत्तरकाशी के धराली गांव में 1:45 बजे बादल फटने से भीषण बाढ़ आई, कम से कम 4 की मौत, 50 लापता। बादल फटना हिमालयी क्षेत्रों में गंभीर आपदा का कारण है, जिससे मिनटों में व्यापक तबाही मच जाती है।

Cloudburst Science: उत्तराखंड के उत्तरकाशी के धराली गांव में मंगलवार दोपहर लगभग 1:45 बजे बादल फटने (Cloudbursts) से भीषण बाढ़ आई। इसके चलते कम से कम चार लोगों की मौत हो गई और 50 से ज्यादा लापता हैं। इस घटना से एक बार फिर हिमालय ने अपना प्रकोप और अपनी ढलानों पर जीवन की नाज़ुक सच्चाई दिखाई है।

बादल फटना क्या है?

बादल फटना सिर्फ भारी बारिश नहीं है। इस स्थिति में अचानक बहुत अधिक तेज बारिश होती है। मिनटों में एक छोटे से क्षेत्र में लाखों लीटर पानी बरस पड़ता है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, बादल फटना 20-30 वर्ग किलोमीटर के दायरे में एक घंटे में 20 मिमी से अधिक वर्षा को कहते हैं। यह आमतौर पर पहाड़ी या पर्वतीय क्षेत्रों में होता है।

बादल फटना क्यों खतरनाक है?

बादल फटने की घटना में बेहद कम समय में बहुत अधिक पानी जमीन पर गिरता है। अगर यह घटना ऐसे इलाके में हो जहां पहले से बारिश हो रही हो और ढलान हो तो मामला गंभीर हो जाता है। पहाड़ी इलाके में ढलान वाले क्षेत्र में बारिश से मिट्टी गिली होकर ढीली हो जाती है। ऐसे में जब बादल फटने से अचानक बहुत अधिक पानी गिरे तो वह इसे संभाल नहीं पाती। मिट्टी पानी के साथ बह जाती है, जिससे भूस्खलन की स्थिति बनती है। छोटी धाराएं नदियों की तरह बहने लगती हैं। नदियां पानी, कीचड़ और पत्थरों के हिमस्खलन की तरह बहती है। इसका नतीजा भयावह होता है। यह अपने चपेट में आए घरों, सड़कों और पुलों को बहा ले जाता है। इससे भारी नुकसान का खतरा रहता है।

हिमालय में क्यों होती हैं बादल फटने की अधिक घटनाएं?

उत्तरकाशी आपदा को समझने के लिए हमें बादल फटने के पीछे के विज्ञान को समझना होगा। सबसे पहले गर्म और नम हवा (खासकर मानसून के मौसम में) जमीन से ऊपर उठती है। जैसे-जैसे यह ऊपर उठती है, ठंडी होकर बादल बन जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में भूगोल एक भूमिका निभाता है। ऊपर उठती हवा का सामना तेज ढलान वाले भूभाग से होता है। इससे हवा तेजी से ऊपर की ओर उठती है और जल्द बादल बनता है।

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जब बादल पानी की बूंदों से बहुत अधिक भारी हो जाते हैं और वायु धाराएं (जिन्हें अपड्राफ्ट कहा जाता है) वजन सह नहीं पातीं तो पानी नीचे की ओर गिरने लगता है। इससे कुछ ही मिनटों में बहुत अधिक बारिश होती है। ये घटनाएं काफी हद तक अप्रत्याशित होती हैं। चक्रवातों या बड़े तूफान के विपरीत, बादल फटने की चेतावनी कई दिनों तक नहीं मिलती। सबसे अच्छी स्थिति में उपग्रह और डॉप्लर रडार बादल फटने से कुछ समय पहले ही इसका पता लगा सकते हैं, लेकिन ऐसा हमेशा समय पर नहीं होता। यही वजह है कि हर बार बादल फटने की सटीक चेतावनी जारी नहीं हो पाती।

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हिमालय दुनिया का सबसे ऊंचा पहाड़ है। मानसून की हवा इसे पार नहीं कर पातीं। इसके चलते मानसून के दिनों में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों में बादल फटने की घटना होने का खतरा अधिक होता है।