सार
अफगानिस्तान की एक प्रथा है बच्चा पोश। इसमें लड़कियों को बचपन से लड़कों की तरह जीने की आजादी दी जाती है। वे हर वो काम करती हैं, जो बच्चे करते हैं, मगर किशोर अवस्था में आने के बाद उन्हें वापस से लड़कियां बनना पड़ता है।
नई दिल्ली। क्या कोई इस बात पर भरोसा कर सकता है कि अफगानिस्तान, जहां तालिबानियों का शासन है, में कुछ लड़कियां लड़कों की तरह रहती हैं। वे लड़कों की तरह कपड़े पहनती हैं। घूमने-फिरने जाती हैं। खेलकूद में हिस्सा लेती हैं और तो और स्कूल-कॉलेज या फिर मदरसा भी जाती हैं।
दरअसल, इस बात पर लोग भरोसा जल्दी इसलिए नहीं करेंगे, क्योंकि तालिबानी शासन में सबसे खराब स्थिति में लड़कियां और महिलाएं ही रहती हैं। तालिबान का शासन उनके लिए नर्क के समान है। उन्हें तमाम क्रूर पाबंदियों के साथ अपनी जिंदगी गुजारनी पड़ती है। मगर इन सबके बीच यहां एक ऐसी प्रथा है, जिसे बच्चा पोश कहते हैं।
तालिबान हस्तक्षेप नहीं करता, अल्बानिया और पाकिस्तान में भी प्रचलित
यूं तो ज्यादातर प्रथाएं अजीबो-गरीब और खराब ही रही हैं, मगर तालिबानी शासन के बीच बच्चा पोश प्रथा अगर जारी है, तो सुकून देने वाली है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इसमें कुछ लड़कियों को सही, मगर उन्हें जीने की आजादी तो मिलती है। यह प्रथा अल्बानिया और पाकिस्तान में पश्तूनों में भी निभाई जाती है। इसमें लड़कियां और महिलाएं कुछ हद तक पुरुषों की तरह अपनी जिंदगी जी सकती हैं। अफगानिस्तान मामलों से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि असल में यह प्रथा परिवार से जुड़ी है और लंबे समय से चली आ रही है, ऐसे में तालिबान इसमें हस्तक्षेप नहीं करता। वैसे भी यह पाकिस्तान और अल्बानिया जैसे देशों में भी प्रचलित है।
एक जिंदगी में दोहरा रोल अपनाना पड़ता है
इस प्रथा के तहत हर परिवार में एक बेटी को चुना जाता है, जिसका पालन-पोषण लड़कों की तरह किया जाता है। वैसे, इसे लेकर कुछ नियम भी हैं, जिनका पालन करना जरूरी है। हालांकि, इसका नकारात्मक पहलू भी है। वह यह कि वह लड़की पूरी तरह लड़कों की तरह व्यवहार करने लग जाती है और सिर्फ उसका तन लड़कियों वाला रहता है बाकि, विचार, व्यहवहार सभी में तब्दीली आ जाती है। मगर यह आजादी उन्हें किशोर अवस्था तक होती है, जैसे उनकी उम्र 16 के करीब होती है, उन्हें वापस अपनी लड़की वाली जिंदगी में लौटना पड़ता है।
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