सार

एक्सपर्ट के अनुसार, हैप्पी हाइपोक्सिया के कारण करीब 5 फीसदी मौतें हुई हैं। ऑक्सीजन लेवल कम होने से अचानक सांस लेने में तकलीफ, कमजोरी, घबराहट, पसीना आना, चक्कर आने लगते हैं और मरीज की तबियत बिगड़ने लगती है।

हेल्थ डेस्क. कोरोना संक्रमण (covid-19) की वजह से लोगों में सर्दी, बुखार, गले में खराश के साथ ही ऑक्सीजन (Oxygen) का लेवल गिरने लगता है, लेकिन दूसरी लहर (Second wave) में ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें कोई लक्षण नहीं था उसके बाद भी रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। कई मामले ऐसे भी हैं जहां बिना किसी सिम्टम्स के मरीज का ऑक्सीजन लेवल बहुत कम हो जाता है और उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है। इसका एक मुख्य कारण हो सकता है हैप्पी हाइपोक्सिया (Happy Hypoxia)। ये लंग्स को नुकसान पहुंचाता है जिस कारण से ऑक्सीजन लेवल कम हो जाता है।

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24 घंटे में बिगड़ रही हालत
कोरोना की दूसरी लहर में युवाओं के लिए हैप्पी हाइपोक्सिया जानलेवा बन गई है। संक्रमण के बावजूद शुरुआत में लक्षण नहीं सामने आ रहे हैं। जब लक्षण सामने आता है तब तक संक्रमित का ऑक्सीजन लेवल नीचे गिर जाता है। 24 से 48 घंटे के अंदर ही संक्रमित की हालत बिगड़ने लगती है।

क्या है हैप्पी हाइपोक्सिया?
इसे कोरोना वायरस का नया लक्षण बताया जा जा रहा है। इसके कारण खून में ऑक्सीजन का लेवल बहुत कम हो जाता है। हेल्दी व्यक्ति के खून में ऑक्सीजन सेचुरेशन 95% या इससे ज्यादा होती है। लेकिन हैप्पी हाइपोक्सिया के कारण संक्रमित का ऑक्सीजन सेचुरेशन घटकर 50% तक पहुंच जाता है। बॉडी में ऑक्सीजन का लेवल कम होने से कार्बन डाई ऑक्साइड का लेवल बढ़ जाता है। ऐसे में कार्डियक अरेस्ट या ब्रेन हेमरेज होने का खतरा बढ़ जाता है।

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इससे कैसे बच सकते हैं
एक्सपर्ट के अनुसार, हैप्पी हाइपोक्सिया के कारण करीब 5 फीसदी मौतें हुई हैं। कोरोना काल में आप अपने ऑक्सीजन लेवल की जांच करते रहें। अगर आपको सांस लेने में तकलीफ हो रही है या फिर पैदल चलने में आपकी सांस फूल रही है तो आप डॉक्टर से संपर्क करें। 

अचानक पता चलता है हैप्पी हाइपोक्सिया
एक्सपर्ट ने बताया कि वायरस के शरीर में आने से लंग्स में इन्फेकशन हो रहा है। ऑक्सीजन लेवल कम होने से अचानक सांस लेने में तकलीफ, कमजोरी, घबराहट, पसीना आना, चक्कर आने लगते हैं और मरीज की तबियत बिगड़ने लगती है। 

क्यों बढ़ रहा है मौतों का आंकड़ा
कोरोना वायरस 85% लोगों में माइल्ड, 15% में मॉडरेट और 2% में जानलेवा हो रहा है। ज्यादातर लोगों में माइल्ड लक्षण होते हैं। ऐसी स्थिति में वो अस्पताल नहीं जाते हैं तकलीफ ज्यादा बढ़ने पर अस्पताल पहुंचते हैं जिस कारण से इलाज में देरी होती है और मौतों का आंकड़ा बढ़ जाता है।