सार
एक मुर्गे की बहादुरी इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। दरअसल, यूपी के प्रतापगढ़ जिले में एक मुर्गा मालिक के मेमने को बचाने के लिए आवारा कुत्तों से भिड़ गया। मेमने को तो उसने बचा लिया, मगर खुद मौत की नींद सो गया।
प्रतापगढ़। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले से हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां एक परिवार ने अपने पालतू मुर्गे के मरने का गम मनाया। विधि-विधान से उसका न सिर्फ अंतिम संस्कार किया बल्कि, तेरहवीं कार्यक्रम भी आयोजित किया। परिवार के इस कदम की इलाके ही नहीं, पूरे जिले में चर्चा है। बताया जा रहा है कि मुर्गे ने बहादुरी का परिचय देते हुए अपनी जान गंवाई।
इस मुर्गे का नाम लाली था और उसने अपने मालिक के बकरी के एक महीने के बच्चे को बचाते समय अपनी जान गंवा दी। बताया जा रहा है कि बकरी के बच्चे पर एक आवारा कुत्ते ने हमला कर दिया था और उसे बचाने के लिए लाली नाम का यह मुर्गा उसे कुत्ते से भिड़ गया। हालांकि, इस झगड़े में मुर्गे ने अपनी जान तो गवां दी, मगर बकरी के बच्चे को बचाने में वह सफल रहा।
आवारा कुत्ता मेमने को खाने के लिए घर के पिछले हिस्से में आ गया था
यह अजीबो-गरीब मामला प्रतापगढ़ जिले के फतनपुर थाना क्षेत्र के बेहदौल कलां गांव का है। बताया जा रहा है कि लाली के तेरहवीं कार्यक्रम में करीब 500 लोग शामिल हुए। बहादुर लाली के मालिक सालिकराम सरोज ने बताया कि यह घटना बीते सात जुलाई की है। घर के पीछे बकरी का एक महीने का बच्चा खेल रहा था। लाली भी वहां रखवाली के लिए था। परिवार वाले भी घर के सामने वाले हिस्से में थे। तभी कुत्ते, मेमने और मुर्गे की जोर-जोर की आवाजें आनी शुरू हो गईं। आवाज लगातार जारी रही तो परिवार के लोग मौके पर पहुंचे। यहां एक गली का कुत्ता पिछले हिस्से में घुस आया था।
मेमने को बचाने के लिए अकेले कुत्तों से भिड़ गया लाली
सालिकराम सरोज ने बताया, जैसे ही कुत्ते ने मेमने पर हमला किया, तभी लाली उसके बचाव में सामने आ गया। वह कुत्ते से लड़ पड़ा, तभी कुछ और कुत्ते वहां आ गए। लाली अकेले ही सभी से जूझ रहा था। उसने कुत्तों को तो भगा दिया, मगर खुद गंभीर रूप से घायल हो गया। इसके बाद अगले दिन यानी 8 जुलाई को उसकी मौत हो गई। सरोज के बेटे अभिषेक ने बताया, हमने उसे घर के पास दफना दिया और किसी पारिवारिक सदस्य के मरने पर जो रस्में निभाई जाती हैं, वह सभी हमनें पूरी कीं। अभिषेक ने कहा, अनुष्ठान करते समय मेरे पिता ने तेरहवीं करने का भी प्रस्ताव रखा था, जिस पर परिवार के सभी लोग सहमत हो गए। तेरहवीं की रस्म में करीब पांच सौ लोग शामिल हुए थे।
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