स्वीडन में 5 साल से बसे भारतीय टेकी अंकुर त्यागी ने विदेशी जीवन की चुनौतियां बताईं। साफ हवा और अच्छी व्यवस्था के पीछे अकेलेपन का संघर्ष है, जहाँ हर काम खुद करना पड़ता है। वे परिवार और दोस्तों के लिए भारत लौट रहे हैं।

बाहर से देखने पर विदेश में जीवन बहुत रंगीन और शानदार लगता है। लेकिन स्वीडन में रहने वाले एक भारतीय टेकी ने खुलासा किया है कि जब आप इसमें कदम रखते हैं, तो बड़ी मुश्किलें आपका इंतजार कर रही होती हैं। साफ हवा, साफ-सुथरी सड़कें और बेहतरीन सामाजिक व्यवस्था... कई लोग विदेशी देशों को रहने के लिए एक आदर्श जगह मानते हैं। लेकिन, जिन्होंने वहां सालों तक अपनी जिंदगी बनाने की कोशिश की है, उनकी सच्चाई बिल्कुल अलग है।

प्रवासी जीवन

अंकुर त्यागी नाम के एक भारतीय प्रवासी ने विदेशों में जीवन बनाने के लिए किए जाने वाले त्याग की कहानी बताई है। स्वीडन में रहने वाले भारतीय अंकुर त्यागी ने हाल ही में एक्स पर विदेश में रहने की मुश्किलों का खुलासा किया। अंकुर पिछले पांच साल से यूरोपीय संघ में रह रहे हैं। इसका कारण साफ हवा, अच्छी सड़कें और मजबूत सामाजिक व्यवस्था है। लेकिन अंकुर लिखते हैं कि किसी को नहीं पता कि यहां जिंदगी बसाने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है।

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अकेलेपन का संघर्ष

अंकुर अपनी पोस्ट में बताते हैं कि विदेश में रहने का मतलब है कि खाना पकाने, सफाई से लेकर सभी तरह के बिल मैनेज करने और बच्चों की परवरिश तक, लगभग सब कुछ अकेले ही करना पड़ता है। वह लिखते हैं, "दोस्त अच्छे तो होते हैं, लेकिन वे दूरी बनाए रखते हैं। यहां मेलजोल बहुत कम होता है।" अपने देश में लोगों को भ्रष्टाचार और दूसरी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन वहां अपनेपन का एहसास बहुत मजबूत होता है। विदेश में समस्याएं अलग तरह की होती हैं, जो गहरी छाप छोड़ जाती हैं, जिसे केवल वही समझ सकते हैं जिन्होंने विदेशी जीवन जिया है। वह लिखते हैं कि हर जगह की एक कीमत होती है और ज्यादातर लोग सीख रहे हैं कि जीने के लिए क्या कीमत चुकानी पड़ती है।

'मुझे ऑक्सीजन चाहिए'

वह लिखते हैं, "मैं साल भर साफ हवा वाली जगह पर रहता हूं। लेकिन हवा की शुद्धता किसे चाहिए? मैं 5 दिसंबर को दिल्ली लौट रहा हूं और मुझे अब दोस्तों और परिवार की असली ऑक्सीजन की जरूरत है।" उनकी पोस्ट पर कई लोगों ने प्रतिक्रिया दी। कुछ ने लिखा कि हर जगह के अपने फायदे और नुकसान होते हैं। कई लोगों ने लिखा कि उन्हें भी विदेशों में अकेलापन महसूस हुआ और इसलिए वे वापस आ गए। वहीं कुछ अन्य लोगों ने लिखा कि प्रवासी जीवन में ऐसा कोई दिन नहीं था जब वे ऊब महसूस नहीं करते थे।