सार
म्यांमार से खदेड़े गए रोहिंग्या मुसलमान लंबे समय से दुनियाभर की मीडिया के चर्चा में हैं। उनका सबसे बड़ा पलायन 2017 में हुआ था। बांग्लादेश में करीब 10 लाख रोहिंग्या रहते हैं। इनमें से एक लड़का अपने इनोवेटिव आइडिया की वजह से मीडिया की सुर्खियों में है।
ढाका. यह है 15 साल के रोहिंग्या मोहम्मद तोयूब की कहानी। बांग्लादेश के कॉक्स बाजार(Cox's Bazar) में 10 लाख से अधिक रोहिंग्या शरणार्थी(Rohingya refugee) रहते हैं। म्यांमार के रखाइन प्रांत में सैन्य कार्रवाई के बाद से बांग्लादेश-म्यांमार सीमा के पास कॉक्स बाजार जिले में ये रोहिंग्या जर्जर झुग्गियों मे रह रहे हैं। इनमें से 15 साल का मोहम्मद तोयूब(Rohingya refugee Mohammad Toyub) भी एक है। कॉक्स बाजार बांग्लादेश में दुनिया की सबसे बड़ी शरणार्थी बस्ती मानी जाती है। तोयूब इंजीनियर बनने की इच्छा रखता है, हालांकि उसके लिए यह बहुत कठिन रास्ता है। हालांकि उसने अपने टैलेंट से सबको चकित कर दिया है। उसने कबाड़ के स्पेयर पार्ट्स(spare parts) से एक स्मॉल हाइड्रोलिक उत्खनन मशीन(hydraulic excavator) बनाई है। (यह भी पढ़ें-जिस्मफरोशी और संगठित अपराधों के गढ़ बने रोहिंग्या रिफ्यूजी कैम्प)
25 अगस्त को म्यांमार छोड़े 5 साल हुए
बांग्लादेश में शरणार्थी रोहिंग्या गुरुवार(25 अगस्त) को रोहिंग्या विद्रोहियों और म्यांमार सुरक्षा बलों के बीच झड़पों की पांचवीं बरसी को के अवसर पर इकट्ठा हुए थे। इसी दौरान मीडिया की नजरों में तोयूब का हुनर सामने आया। तोयूब ने हाइड्रोलिक मशीन बनाने के लिए पंप के रूप में बड़े प्लास्टिक सीरिंज का उपयोग किया। मोहम्मद तोयूब ने अपने इक्विपमेंट की टेस्टिंग रिफ्यूजी कैम्प के एक स्कूल के फर्श पर प्लेट से चावल के दाने उठाकर की। यह देखने के लिए वहां बड़ी संख्या में स्कूली और अन्य बच्चे मौजूद थे। (यह भी पढ़ें-सिर्फ मुसलमान ही नहीं, हिंदू भी हैं रोहिंग्या, 2 साल पहले इस टापू के कारण ग्लोबल मीडिया की चर्चा बने थे)
सिर्फ प्रायमरी तक पढ़ा है तोयूब
तोयूब ने लोकल मीडिया को बताया कि जब वो म्यांमार में था,तब खुदाई करने वाले को हाइड्रोलिक मशीन से खुदाई करते हुए देखता था। तभी उसे इस तरह का खिलौना मॉडल बनाने का विचार आया था। बांग्लादेश आने के बाद उसने स्टील के कुछ छोटे टुकड़े एकत्र किए और इससे मशीन के अलग-अलग पार्ट्स तैयार किए। तोयूब ने 2017 में म्यांमार से भगाए जाने तक केवल कुछ वर्षों की प्राइमरी स्कूलिंग की है। अब वो केवल अपने रिफ्यूजी कैम्प में यूनिसेफ द्वारा चलाई जा रही क्लास में पढ़ता है। हालांकि यह भी कोविड-19 के कारण थम गई थी। उसके पिता दीन मोहम्मद ने कहा: “उन्हें ऐसा करते हुए देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है, क्योंकि वह भी खुश हैं। अब हम शरणार्थी बन गए। मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि मैं उसे अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेज सकूं, ताकि वह बेहतर चीजें हासिल कर सके।"
बता दें कि म्यांमार में रोहिंग्या को बांग्लादेश में अवैध अप्रवासियों के रूप में बदनाम किया जाता है। उन्हें म्यांमार में नागरिकता से वंचित किया जाता है। वे वहां कोई आंदोलन नहीं कर सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि 2017 की सैन्य कार्रवाई नरसंहार के इरादे से की गई थी। हालांकि म्यांमार ने किसी भी नरसंहार से इनकार करते हुए कहा कि वह पुलिस चौकियों पर हमला करने वाले विद्रोहियों के खिलाफ एक लीगल कैम्पेन चला रहा है।
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