सार

पाकिस्तान के बलूचिस्तान की आज हम एक ऐसी खबर आपको बताएंगे। जिसको जानकर आपको भी हैरानी हो जाएगी। आप भी इस बात पर विचार करेंगे कि, आखिर ऐसा कैसे हो गया। हम बात कर रहे हैं हिंगलाज माता मंदिर की जहां हिंदू-मुस्लिस सब वहां दर्शन करने आते हैं।

नई दिल्ली। हमारे देश में मंदिरों की मान्यता यहां के लोगों में बहुत होती है। इतनी की हर मंदिर के बाहर लंबी-लंबा लाइने दिखाई देती है। लेकिन क्या आप जानते हैं ऐसी ही लाइने पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित हिंगलाज माता का मंदिर (Hinglaj Mata Mandir) में भी दिखाई देती है। लेकिन मुस्लिम लोगों की। जी हां ये बात सच है कि, वहां हिंदू लोगों के साथ-साथ मुस्लिम लोग भी यहां दर्शन करने आते हैं।

आइए जानते हैं कौन सी है वो वजह जिसके कारण मुस्लिम लोग माता के सामने सिर झुकाते हैं।

पौराणिक कथाओं में है इसका वर्णन

बलूचिस्तान स्थान में स्थित इस मंदिर को लेकर कई सारी मान्यताएं हैं। लेकिन जितना बताया जाता है, उसके मुताबिक ऐसा कहा जाता है कि, भगवान विष्णु ने जब माता सती का शीश काटने के लिए चक्र फेंका था तो चक्र से कटा शीश जिस जगह पर गिरा था, यही वह जगह है। यह मंदिर बलूचिस्तान से 120 किलोमीटर दूर हिंगुल नदी के तट पर स्थित है।

गजनी ने कई बार इस मंदिर को लूटा

इस मंदिर के बारे में 1500 साल पहले घूमने आए चीनी बौद्ध भिक्षुओं ने कई बातें लिखी हैं। इस मंदिर के बारे में चीनी बौद्ध भिक्षुओं ने बताया कि मोहम्मद बिन कासिम तथा मोहम्मद गजनी ने मंदिर को कई बार लूटा था। इस मंदिर में रोजाना 'जय माता दी' के जयकारे लगते हैं। जयकारा लगाने वालों में हिंदुओं के साथ मुसलमान भी शामिल होते हैं। इसे हिंगलाज भवानी शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है, जो हिंगलाज क्षेत्र में स्थित है।

51 शक्तिपीठों में से एक है

हिंगलाज माता का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है कि माता के 51 शक्तिपीठ में से सबसे महत्वपूर्ण पीठ यहीं आकर गिरा था। धरती पर मां के पहले स्थान के रूप में हिंगलाज माता के मंदिर को जाना जाता है।

इस वजह से मुस्लिम करते हैं पूजा-अर्चना

हिंगलाज माता के मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां हिंदुओं के साथ मुस्लिम भी पूजा-अर्चना करने आते हैं और अपनी शीश झुकाते हैं। इस मंदिर को मुस्लिम लोग 'नानी का मंदिर' के नाम से जानते हैं। बताया जाता है कि मुसलमान किसी प्राचीन परंपरा का पालन करते हुए मंदिर में आस्था रखते हैं तथा देवी मां के दर्शन करने आते हैं। मुस्लिम समाज के लोग मंदिर को अपने तीर्थयात्रा का हिस्सा भी मानते है। इसलिए वह इसे 'नानी का हज' कहते हैं।

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