सार
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, ग्रहों से शुभ फल पाने के लिए कई तरह के रत्न पहने जाते हैं। हर ग्रह का एक विशेष रत्न होता है। केतु से शुभ फल पाने के लिए लहसुनिया पहनने की सलाह दी जाती है। इसे संस्कृत में वैदुर्य कहते हैं।
उज्जैन. व्यापार और कार्य में लहसुनिया पहनने से फायदा मिलता है। इसे धारण करने से किसी की नजर नहीं लगती। लेकिन इसे पहनते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, नहीं तो ये नुकसान भी पहुंचा सकता है। आगे जानिए इससे जुड़ी खास बातें…
1. लहसुनिया रत्न तर्जनी उंगली में पहनना चाहिए क्योंकि गुरु की राशि धनु में उच्च का होता है। इस रत्न को सोना या तांबे की अंगूठी में पहनना शुभ रहता है।
2. कुंडली के किसी भी भाव में अगर मंगल, बृहस्पति और शुक्र के साथ में केतु हो तो लहसुनिया पहनना शुभ रहता है।
3. कुंडली में दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें, नवें और दसवें भाव में यदि केतु हो तो लहसुनिया पहनना लाभकारी सिद्ध होता है। केतु त्रिकोण में हो अर्थात केतु 1, 2, 4, 5, 7, 9, 10 भाव में हो लहसुनिया पहनने से फायदा होता है।
4. केतु सूर्य के साथ हो या सूर्य से दृष्टि संबंध हो तो भी लहसुनिया धारण करना चाहिए।
5. केतु की महादशा और अंतरदशा में भी लहसुनिया धारण करना अत्यंत फलदायक होता है।
6. लाल किताब के अनुसार तीसरे और छठे भाव में केतु है तो लहसुनिया नहीं पहनना चाहिए वर्ना नुकसान होने की संभावना रहती है।
7. इस रत्न को हीरे के साथ कभी भी नहीं पहनना चाहिए, क्योंकि इससे बार-बार दुर्घटना के योग बनता रहेगा।
8. लहसुनिया के साथ- माणिक्य, मूंगा, पुखराज, मोती वर्जित है।
9. यदि लहसुनिया में चमक ना हो तो उसे धारण नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे धन की हानि होती है।
10. दोषयुक्त या धारियां, धब्बे, छींटे या छेद युक्त लहसुनिया धारण नहीं करना चाहिए। यह नुकसानदायक होता है।
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