सार
शारदीय नवरात्रि की द्वितिया तिथि (30 सितंबर) को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है।
उज्जैन. देवी ब्रह्मचारिणी ब्रह्म शक्ति यानि तप की शक्ति का प्रतीक हैं। इनकी आराधना से भक्त की तप करने की शक्ति बढ़ती है। साथ ही सभी मनोवांछित कार्य पूर्ण होते हैं।
इस विधि से करें देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा
- सबसे पहले चौकी (बाजोट) पर माता ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
- इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।
- चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें।
- इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां ब्रह्मचारिणी सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें।
- इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें।
- तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।
ध्यान मंत्र
दधना करपद्याभ्यांक्षमालाकमण्डलू।
देवीप्रसीदतु मयी ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
अर्थात: देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अद्भुत और दिव्य है। मां के दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमंडल रहता है।
दूसरे दिन क्यों करते हैं देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा?
नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां दुर्गा का ये स्वरूप तपस्या का प्रतीक है। देवी ने सफेद वस्त्र धारण किए हैं। अर्थ ये है कि जब हम तपस्या के मार्ग पर उतरे तो हमारा मन एकदम सफेद यानी स्वच्छ होना चाहिए। तभी हम ईश्वर को पा सकेंगे। मन में अगर किसी भी तरह का मैल यानी बुरी भावना हो तो ईश्वर को नहीं पाया जाता। यही कारण है कि नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है।
30 सितंबर के शुभ मुहूर्त
सुबह 9.00 से 10.30 तक- शुभ
दोपहर 1.30 से 3.00 तक- चर
दोपहर 3.00 से 4.30 तक- लाभ
शाम 4.30 से 6.00 तक - अमृत